कुल्लू,
भारत वर्ष की पावन भूमि में सृष्टि के आरम्भ से ही आदि शक्ति , शिव या कोई देव हो ,सब प्रकार के अवतार हुए हैं । जिसमे से बहुधा इतिहास के पन्नो में स्वर्ण अक्षर स्वरूप पुराणों और संहिताओं में अंकित हो गए । परन्तु हिन्दू धर्म में ऐसे भी अवतार और भगवान की विशिष्ट प्रकार की लीला हुई जो पीढ़ी दर पीढ़ी जनश्रुतियों के माध्यम से चली आ रही है । जिनमें से बहुधा रामायण काल और महाभारत काल की मानी जाती है ।
हिमाचल में भी ऐसी बहुत सी ऐतिहासिक घटनाएं हुई जो आज भी पीढ़ी दर पीढ़ी जनश्रुतियों के माध्यम से यहां की संस्कृति का एक अभिन्न अंग रही है । पुरातन संस्कृति को संजोने में जनश्रुतियों का सबसे अहम योगदान रहा है । हिमाचल में ऐसे भी तीर्थ स्थल है जो पुराणों में वर्णित होने के साथ साथ जनश्रुतियों में भी अंकित है । यहां के बहुधा देव स्थल विभिन्न मान्यताओं के कारण विशेष रूप से आस्था का केंद्र रहे है । परन्तु एक ओर कलयुग के आरम्भिक काल में प्रकट हुए ऐसे भी देव विग्रह है जिनका जिक्र कहीं भी नहीं मिलता वो केवल जनश्रुतियों में ही सीमित रह गए परन्तु इसका अर्थ ये भी नहीं है कि उनका कोई मूल आधार नहीं है हो सकता है वो पुराणों एवं सहिंताओ में किसी अन्य नाम से अंकित रहे हो । जिनका अनुमान इस युग से न होकर के अन्य युगों से रहा हो अन्यथा विना अस्तित्व की कोई वस्तु का इतना चिरकालीन इतिहास न होता । यहां की प्रत्येक घटनाएं जो देव कसौटी की परक हो वो सब जनश्रीतियों के माध्यम से इतिहास के पन्नों में अंकित हो गई । जैसे पांडव कालीन ऐसे बहुत अचंभित कार्य है जिनका वर्णन कहीं भी नहीं हुआ है और पांडवों के द्वारा किए गए वो कार्य आज के युग में कोई भी शिल्पकार या महाबली नहीं कर सकता । परन्तु रामायण व महाभारत की घटनाओं के अतिरिक्त कृतयुग की सती खण्ड से विभिन्न शक्तिपीठों का भी वर्णन है जिनमें से कुछेक तो पुराणों में भी वर्णित है और इनमें से बहुधा जनश्रुतियों का अंग बन गई । कुछ भी हो परन्तु जनश्रीतियों के कारण हिमाचल की पुरातन ऐतिहासिक संस्कृति आज भी कायम है । संस्कृति को तदरूप बनाए रखने में जनश्रुतियों का अहम भूमिका रही है । हिमाचल की पुरातन संस्कृति की गरिमा को समेटने में देवस्थलों और स्थान विशेष की वास्तुकला भी अग्रणी रही है । हिमाचल के तीर्थस्थल व ऐतिहासिक घटनाक्रम को बहुत स्थानों पर वास्तुकला ने भी जीवित रखा है ।