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धर्म संस्कृति

सत्संग अर्थात् सत् का संग ।

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पंडित मोहिंद्र शर्मा | May 06, 2020 05:34 PM

शिमला,

सत् अर्थात् ईश्वर अथवा ब्रह्मतत्त्व । सत्संग अर्थात् ईश्वर के अथवा ब्रह्मतत्त्व की अनुभूति की दृष्टि से. अध्यात्म के लिए पोषक वातावरण । कीर्तन अथवा प्रवचन के लिए जाना, तीर्थक्षेत्र में निवास करना, संतलिखित आध्यात्मिक ग्रंथों का वाचन, अन्य साधकों के सान्निध्य में रहना, संत अथवा गुरु के पास जाना इत्यादि से अधिकाधिक उच्च स्तर का सत्संग प्राप्त होता है ।

सत्संग का महत्त्व

एक बार वसिष्ठ तथा विश्वामित्र ऋषियों में विवाद हुआ था कि, सत्संग श्रेष्ठ या तपश्चर्या ? वसिष्ठ ऋषि ने बताया कि, ‘‘सत्संग’’; तो विश्वामित्र ऋषि ने बताया कि, ‘‘तपश्चर्या ।’’ विवाद का निर्णय करने हेतु वे ईश्वर के पास गए । ईश्वर ने बताया कि, ‘शेष के पास ही तुम्हें तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर प्राप्त होगा !’’ अतः दोनों शेषनाग के पास गए । उन्होंने प्रश्न पूछने के पश्चात् शेष ने उत्तर दिया कि, ‘‘मेरे सिर पर जो पृथ्वी का वजन है, वह तुम कुछ मात्रा में हल्का करों । पश्चात् मैं विचार करूंगा तथा उत्तर दूंगा ।’’ इस बात पर विश्वामित्र ने संकल्प किया कि, ‘मेरे सहस्त्र वर्ष की तपश्चर्या का फल मैं अर्पण करूंगा । पृथ्वी शेष के सिर से कुछ ऊपर ऊठें ।’ किंतु पृथ्वी बिलकुल बाजू नहीं हुई । पश्चात् वसिष्ठ ऋषि ने संकल्प किया, ‘आधे घटका का (बारह मिनटों का) सत्संग का फल मैं अर्पण करूंगा । पृथ्वी अपना वजन न्यून करें ।’ पृथ्वी त्वरित ऊपर ऊठ गई ।

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