चौपाल,
गुरूवार को देवठन पर्व पर भारी बर्फवारी के मध्य क्षेत्र के लोगों के आराध्य बिजट महाराज अपने बड़े भाई शिरगुल महाराज से मिलने चूड़धार पंहुचे ! चूड़धार पंहुचने पर बिजट महाराज का स्नान के बाद उनके बड़े भाई शिरगुल महाराज के साथ मिलन करवाया गया ! दोनों देव भ्राताओं के मिलन के उपरान्त शिरगुल देवता मंदिर के कपाट अगले पांच माह के लिए बंद कर दिए गए ! प्रति वर्ष आयोजित होने वाले इस देव कार्यक्रम में आम तौर पर पांच से छह हजार के बीच श्रद्धालु पंहुचते थे,परन्तु इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण करीब पांच सौ श्रद्धालु ही चूड़धार पंहुच पाए ! चूड़ेश्वर सेवा समिति के प्रबंधक बाबू राम शर्मा ने बताया कि देवठन पर्व पर चूड़धार में भारी बर्फवारी के बाद मंदिर के पुजारी,चूड़ेश्वर सेवा समिति के समस्त पदाधिकारी और सदस्य,मंदिर कमेटी के सदस्य एवं सभी होटल ढाबे वाले चूड़धार से चले गए है ! बर्फवारी के बाद चूड़धार में खाने पीने और ठहरने की कोई भी व्यवस्था नहीं है ! उन्होंने श्रद्धालुओं और ट्रैकिंग के शौक़ीन युवाओं से आग्रह किया है कि बर्फ के बीच चूड़धार की यात्रा अथवा ट्रैकिंग का जोखिम ना उठायें ! बाबू राम शर्मा ने बताया कि यूं तो प्रशासनिक तौर पर हर साल मंदिर के कपाट तीस नवंबर से 30 अप्रैल तक बंद रहते हैं,परन्तु इस बार नवंबर माह में ही चूड़धार में भारी बर्फवारी के चलते मंदिर के कपाट देवठन पर्व के साथ 26 नवंबर को ही बंद करने का निर्णय लिया गया है ! उन्हों ने बताया कि प्रशासनिक तौर पर भले ही मंदिर के कपाट 30 नवंबर से 30 अप्रैल तक बंद रहते है,परन्तु देव परम्परा के अनुसार हिंदी महीने पौष की सक्रांति पर देवता शिरगुल की सहमति जिसे स्थानीय भाषा में पौल लगाना कहते है से उसी दिन से बैसाख माह की सक्रांति तक कपाट बंद रखने की सदियों पुरानी परम्परा है ! दिसंबर माह में सक्रांति वाले दिन दिन चार माह की पौल लगने के बाद बैसाख यानी अप्रैल माह की सक्रांति को मंदिर के कपाट खोल कर देवता की विधिवत विशेष पूजा की रस्म आज भी निभाई जाती है !