देश के बाशिंदे है उन्हीं को रोका जाए?ये कहां का न्याय है?
" अगर सड़कें खामोश हो जाएं तो संसद अवारा हो जाएगी!"
शिमला,
आम आदमी पार्टी हिमाचल प्रदेश ने केंद्र की मोदी सरकार पर पंजाब और हरियाणा के है नहीं बल्कि पूरे भारत वर्ष के किसान मोदी सरकार के खिलाफ उसकी गलत नीतियां अपनाने और उनके साथ इस महासरद मौसम के दौरान उन्हें खुली सड़कों में सरकार के खिलाफ इक्कठे होने को फिजूल में मजबुर किया जा रहा है।
सरकार का उनके साथ इस कदर निरंकुश रवैया अपनाने के लिए आम आदमी मोदी मोदी सरकार का विरोध करती है।पार्टी साथ में मांग भी करती है कि किसानों कि ईछा के विरूद्ध जो तीन कानून हाल ही में मोदी सरकार ने बनाए है, उन्हें तत्काल प्रभाव से रद करें और निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए जल्दी किसानों से भारत सरकार बात करें।ताकि हमारे देश के अन दाता खुशी से अपने घर जाए और वो अपनी खेती बाड़ी का काम जारी रखें।
मोदी सरकार की तरफ से किसानों के साथ जो कहा सुनी,पुलिस का बर्ताव ओर ठंड के मौसम ने उनके उपर ठंडे पानी की बोछारे करना इत्यादि ये बिल्कुल अच्छा नहीं लगा।क्योंकि किसान हमारे लिए पूजनीय है।जो हमे थली में परोस के खिलाते है।
उनके साथ सरकार ऐसा बर्ताव अमल में लाए वाह?अफसोस।यहां तक कि हमारे देश के इन हीरो रूपी किसानों को दिल्ली जाने के लिए भी जगह जगह रोका जाने लगा?जो इसी
देश के बाशिंदे है उन्हीं को रोका जाए?ये कहां का न्याय है?
जब की 1987 में राजीव गांधी सरकार थी और बाबा महेंद्रसिंह टिकैत के नेतृत्व में 10 लाख किसान जंतर-मंतर से लेकर वोट-क्लब तक खचाखच भरे हुए थे। किसी भी किसान को दिल्ली आने से नहीं रोका गया था।
2014 से पहले कितनी ही बुरी सरकारें रही हो मगर किसानों को दिल्ली में आने से नहीं रोका गया था।2014 के बाद यह सिलसिला शुरू हुआ है।जब से 2गुजराती राजनेताओं ने अपने 2 व्यापारी मित्रों के सहयोग से दिल्ली की सत्ता पर कब्जा किया तब से किसान दिल्ली की सत्ता के लिए आतंकी सरीखे बन गए!
किसी भी लोकतांत्रिक देश मे शांतिपूर्वक विरोध-प्रदर्शन का दमन करना तानाशाही रवैया होता है।किसानों के रास्ते को रोकना,बैरिकेड लगाना,सड़के खोदना आदि साबित करता है कि तानाशाहों को अपनी जनता से ही खतरा नजर आता है।
धार्मिक भावनाओं को भड़काकर हासिल की गई सत्ता जनता के बुनियादी मुद्दों के उठने से घबराती है और घबराहट में क्रूर व दमनकारी तरीके पर उतर आती है।
डॉ लोहिया ने कहा था " अगर सड़कें खामोश हो जाएं तो संसद अवारा हो जाएगी!"संसद में कानून पास करने के तरीके पिछले कई सालों से हम देख रहे है।आवारागर्दी की सीमाएं लांघी जा चुकी है।ऐसे में सड़कों का आबाद होना सुकून भरा अहसास दिलाता है।
हर आंदोलन को शुरू में तोड़कर गर्व महसूस कर रहे तानाशाहों को पहली बार किसानों ने सशक्त चुनौती दी है।ऐसे में हम सभी लोगों का दायित्व बनता है निरंकुशता पर लगाम लगाने के लिए इस किसान आंदोलन का जमकर समर्थन करें।
देश के लेखकों,कवियों,शायरों ने भले ही खामोशी धारण कर ली हो मगर हम किसान पुत्रों को लिखना-बोलना चाहिए।जो भी टूटा फूटा लिख सको जरूर लिखो।अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए भाषाई पकड़ या अलंकरणों की जरूरत नहीं होती।