हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के छोटे से गांव छड़ोल में रहने वाले साहिल सपुत्र नरेश कुमार ने यह साबित कर दिया है कि बड़े सपने देखने के लिए शहरों में रहना जरूरी नहीं। चंडीगढ़ की एक निजी कंपनी में काम करने वाले साहिल ने आत्मनिर्भर बनने और आर्थिक स्थिरता पाने के लिए स्वरोजगार की राह चुनी। मत्स्य पालन का व्यवसाय अपनाकर साहिल ने न केवल खुद को एक नई पहचान दी बल्कि अपने गांव को भी विकास और प्रेरणा की मिसाल बना दिया। उनकी इस सफलता के पीछे हिमाचल प्रदेश मत्स्य विभाग और पीएम मत्स्य संपदा योजना का अभूतपूर्व सहयोग रहा।
स्वरोजगार का साहसिक फैसला
पीएम मत्स्य संपदा योजना के तहत साहिल ने 30 नवंबर 2023 को Small Biofloc Tanks के निर्माण के लिए अनुदान का आवेदन किया। उन्होंने 7 टैंकों की योजना बनाई, जिनका व्यास 4 मीटर और ऊंचाई 1.5 मीटर थी। इस आवेदन की एक खास बात यह रही कि इसे मात्र 12 दिनों में स्वीकृत कर दिया गया, जो कि साहिल की मेहनत और सरकार की योजनाओं की प्रभावशीलता को दर्शाता है। इस त्वरित स्वीकृति ने साहिल को अपने मत्स्य पालन के व्यवसाय को तेजी से स्थापित करने में महत्वपूर्ण मदद प्रदान की।
सरकार का सहयोग और साहिल का समर्पण
लगभग 7.50 लाख रुपये की लागत वाली इस परियोजना के लिए सरकार ने 40% (3 लाख रुपये) का अनुदान स्वीकृत किया। हिमाचल प्रदेश मत्स्य विभाग के अधिकारियों ने साहिल को हर कदम पर तकनीकी सहायता प्रदान की। Biofloc तकनीक की बारीकियों को समझाने से लेकर टैंकों के निर्माण और संचालन तक, हर स्तर पर मत्स्य विभाग ने उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। इसके साथ ही, विभाग ने साहिल को मछलियों के उचित बाजार तक पहुंचाने में भी मदद की।
परिश्रम और दृढ़ता से खड़ा व्यवसाय
मार्च 2024 में साहिल ने टैंकों का निर्माण कार्य शुरू किया। जब निर्माण आधा पूरा हो गया, तो उन्हें पहली अनुदान राशि के रूप में 1.20 लाख रुपये मिले। अप्रैल और मई 2024 में साहिल ने 7,000 पंगेसियस मछलियों का बीज संग्रहित कर अपने व्यवसाय की शुरुआत की। मई 2024 में टैंकों का निर्माण पूरा होने के बाद उन्हें शेष अनुदान राशि (1.80 लाख रुपये) प्रदान की गई। अगले 5 महीनों में साहिल ने मछलियों के आहार और देखभाल में 2.50 लाख रुपये का निवेश किया।
पहली सफलता: आर्थिक आत्मनिर्भरता का आगाज
अक्टूबर 2024 में साहिल ने पहली बार अपनी मछलियों की बिक्री की। उन्होंने 500 किलोग्राम मछलियां 125 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचकर 62,500 रुपये की आय अर्जित की। यह उनकी मेहनत और सरकार की योजना के सफल क्रियान्वयन का प्रमाण है।
मत्स्य विभाग की अहम भूमिका
साहिल की इस सफलता के पीछे मत्स्य विभाग का बड़ा योगदान रहा। उन्होंने Biofloc तकनीक सिखाने से लेकर मछलियों के रखरखाव और बिक्री तक, हर स्तर पर मार्गदर्शन दिया। विभाग ने यह सुनिश्चित किया कि साहिल को उनके व्यवसाय में किसी भी तरह की परेशानी न हो। बाजार तक पहुंच उपलब्ध कराने और मछलियों की बिक्री के लिए संभावनाएं बनाने में विभाग का विशेष सहयोग रहा।
युवाओं के लिए प्रेरणा की कहानी
साहिल का यह सफर सिर्फ एक सफलता की कहानी नहीं, बल्कि उन युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो स्वरोजगार के माध्यम से आत्मनिर्भरता की तलाश में हैं। उनकी यात्रा यह दिखाती है कि आधुनिक तकनीक और सरकारी योजनाओं का सही उपयोग करके गांवों में भी आर्थिक उन्नति संभव है। साहिल ने यह साबित कर दिया है कि मेहनत, सही योजना और सरकारी सहयोग से हर सपना साकार हो सकता है।