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लेख

गुरु के महत्व को अवलोकित करता पर्व-- गुरु पूर्णिमा

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प्रीति शर्मा "असीम" | July 05, 2020 09:52 AM

गुरु के महत्व को अवलोकित करता पर्व------- गुरु पूर्णिमा


जीवन को ,
जो उत्कृष्ट बनाता हैं ।
मिट्टी को ,
जो छूकर मूर्तिमान कर जाता है ।

बाँध क्षितिज रेखाओं में,
नये आयाम बनाता हैं ।

जीवन को,
जो उत्कृष्ट बनाता हैं ।
ज्ञान को,
जो विज्ञान तक ले जाता है ।

विद्या के दीप से ,
ज्ञान की जोत जलाता है |
अंधविश्वास के ,
समंदर को चीर,
नवीन तर्क के ,
साहिल तक ले जाता है |

मानवता की पहचान से ,
जो परम ब्रह्म तक ले जाता है ।

सत्य -असत्य,
साकार को आकार कर जाता है ।

जीवन-मरण,
भेद-अभेद के भेद बताता हैं |
वह प्रकाश -पुंज ,
ईश्वर के बाद गुरु कहलाता है।

कल आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा है।इसे हम गुरु पूर्णिमा भी कहते हैं।इसी दिन उत्तरमीमांसा के प्रणेता भगवान वेदव्यास का अवतरण हुआ था।
गुरु स्वयं वेद समान होता है। वेद शब्द का अर्थ है ज्ञान। ज्ञान अनंत है,जिसका कोई अंत नहीं। और इसी ज्ञान की उपलब्धि के लिए मनुष्य जीवन भर खोज में रहता है। भारतीय संस्कृति और वैदिक साहित्य में ज्ञान की प्राप्ति का माध्यम गुरु को बनाया है जो भी मनुष्य जहां से ज्ञान प्राप्त करता है उसका माध्यम एक गुरु होता है ।एक बच्चा स्कूल जाता है तो टीचर से सीखता है। अपने आसपास से सीखता है ,घर से सीखता है ,समाज से सीखता है। वैसे देखा जाए तो जिस किसी से भी हम जीवन में कुछ सीखते हैं वह हमारे लिए गुरु तुल्य है। लेकिन अध्यात्म में यह माना जाता है कि गुरु ज्ञान के द्वारा आपको ईश्वर से मिलाने की शक्ति रखता है अर्थात गुरु के बिना ज्ञान नहीं हो सकता।और ज्ञानपाने के लिए हमें गुरु की आवश्यकता पड़ती है।
सरलीकरण करके उसको चार भागों में विभक्त किया।उन्होंने ॠक,यजु, साम, और अथर्ववेद के रूप में ज्ञान को वर्गीकृत किया। ज्ञान के मूल स्वरूप को सर्वसामान्य के मध्य प्रसारित किया, इसलिए उनको भगवान वेदव्यास कहा जाता है। और उनके जन्म दिवस को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।
गुरु ग्रंथ साहब में भी कहा गया है गुरूद्वारा अर्थात गुरु का द्वारा।
गुरू द्वार है, ऐसे में सदगुरू कहते हैं मैं तो केवल एक द्वार हूँ, परमात्मा ही एकमात्र मंदिर है।
द्वार से गुजरने के लिये झुकना पड़ता है तभी तुम अंदर प्रवेश कर पाओगे। स्थापना गुरु के बिना हम ईश्वर को भी प्राप्त नहीं कर पाएंगे।
गुरु के सानिध्य में जीवन की दिशा और दशा, दोनों ही परिवर्तित होते है।
"गुरु ही ज्ञान ध्यान जप पूजा,गुरु विद्या विश्वास।
जो गुरु के गुण गौरव जाने,गोविन्द
उनके पास।। इस प्रकार गुरु की महिमा अपरंपार है। हमारी जीवन को दिशा देकर हमें एक दिशा की ओर ले कर जाते हैं। और हमारे जीवन को अलौकिक प्रकाश से भर देते हैं। इसलिए जीवन में अच्छे गुरु का अनुसरण करना चाहिए।

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