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अंदर की बात

विशेष: अव्यवहारिक समाज में कोरोना

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हितेंद्र शर्मा | April 09, 2020 02:26 PM

 

शिमला,

कोरोना वायरस के संकट और बढ़ते संक्रमण के मध्यनजर देश में लॉकडाउन है। इस वैश्विक महामारी से सुरक्षित रहने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग ही एकमात्र तरीक़ा है। क्योंकि कोरोना वायरस के लिए अभी तक कोई दवाई या वैक्सीन नहीं है। वर्तमान कोरोना महामारी के साथ कुछ भ्रांतियां और डर भी समाज में फैल रहा है। इस गंभीर दौर में भी लोग सिर्फ़ अपने और अपने परिजनों की सुविधाओं तक ही सोच रहे है। समाज के अव्यवहारिक लोगों द्वारा आस-पड़ोस के नागरिकों, समाजिक कार्यकर्ताओं, प्रशासन और सरकारों के कार्यो में गलतियां ढूंढने और सोशल मीडिया के माध्यम से आरोप-प्रत्यारोप का कार्य युद्ध स्तर पर जारी है। मूर्खतापूर्ण रवैये और सम्पन्नता के नशे में चूर कोरोना जैसी वैश्विक महामारी को नजरअंदाज कर निरंतर सोशल मीडिया पर बेवजह की बातों में भ्रामक टिप्पणीयों का दौर जारी है।

वैश्विक समस्या में भी हमारा समाज ऐसे सुपरहीरो ढूंढ़ रहा है जो सिर्फ उनके मनमुताबिक काम करें। अधिकांश लोग स्वयं कुछ नहीं करना चाहते सिर्फ समाजसेवियों की गलतियां ढूंढ़ उन्हें दान की महिमा बता रहे है। आपदा के इस दौर में समाजिक हित में कार्य करने वाले लोगों की खबरों के माध्यम से अन्य व्यक्तियों को भी समाजिक कार्यो के लिए मीडिया द्वारा प्रोत्साहित किया जा रहा हैं। वास्तव में समाज का हर व्यक्ति प्रेरणा का केंद्र और समाजसेवा का माध्यम बने क्योंकि वर्तमान में व्यक्ति और समाज के हर वर्ग को यथासंभव सेवा कार्य से देशहित में सामने आना चाहिए।

आपदा के वर्तमान दौर में पूर्वाग्रह से ग्रसित और कान के कच्चे लोग कोरोना से अधिक घातक है। समाज का कोई भी स्वस्थ एंव जागृत मस्तिष्क इनसे सहमत नहीं हो सकता लेकिन दुर्भाग्य कि जागरूक लोगों की संख्या हमेशा से कम ही रही है। असमाजिक लोगों द्वारा सोशल मीडिया पर झूठी अफवाहें और समाजिक सन्तुलन बिगाड़ने की कोशिशें कानून व्यवस्था के समक्ष एक बड़ी चुनौती है। देश और राज्यों में शांति व्यवस्था बनाए रखना और नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करना आसान नहीं है। देश में हर विषय पर राजनीतिक और सामाजिक टकराव एंव तनावपूर्ण माहौल खड़ा होना साधारण बात है। मेरा व्यक्तिगत विचार है कि "आप तकनीकी रूप से सर्वश्रेष्ठ हो सकते हैं, यदि आप व्यवहारिक नहीं तो आप मानवता पर बोझ है।"

 ✍️ हितेन्द्र शर्मा

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