विश्वविद्यालय की एन.ए.बी.एल. मान्यता प्राप्त उन्नत मृदा और पत्ती विश्लेषण प्रयोगशाला और कृषि विज्ञान केंद्र शिमला, रोहड़ू की मृदा परीक्षण प्रयोगशाला ने पारंपरिक रूप से उर्वरित मिट्टी और प्राकृतिक खेती प्रणालियों दोनों में फास्फोरस के स्तर का आकलन करने के लिए 3,698 मिट्टी के नमूनों का विश्लेषण किया। विश्लेषण से मिट्टी में फास्फोरस की उच्च मात्रा का पता चला और इसलिए किसानों को एक वर्ष छोड़कर फास्फोरस की अनुशंसित मात्रा डालने की सलाह दी जाती है।
विश्वविद्यालय द्वारा मृदा सैंपल के निष्कर्षों के आधार पर पारंपरिक रासायनिक कृषि और प्राकृतिक कृषि-दोनों प्रणालियों के लिए निम्नलिखित उर्वरक ऐप्लकैशन दिशानिर्देश दिए जाते है:
पारंपरिक रासायनिक कृषि प्रणालियों के लिए तदर्थ अनुशंसाएँ:
- हर वर्ष की जगह एक वर्ष छोड़ कर फॉस्फोरस की अनुशंसित मात्रा पौधे को दे और कॉम्प्लेक्स फॉस्फेटिक उर्वरकों (12:32:16) के स्थान पर दूसरे वर्ष में सिम्पल फॉस्फेटिक उर्वरकों (सिंगल सुपर फॉस्फेट*) का उपयोग करें।
- नाइट्रोजन और पोटेशियम उर्वरकों की अनुशंसित डोज दें।
प्राकृतिक कृषि प्रणालियों के लिए सिफारिशें:
- रासायनिक उर्वरकों की जगह प्राकृतिक कृषि आदानों का इस्तेमाल करें। प्राकृतिक कृषि प्रणालियों के मृदा विश्लेषण से पता चला कि उपलब्ध फास्फोरस का उच्च स्तर हैजिसमें सूक्ष्म पोषक तत्वों की कोई कमी नहीं पाई गई है।
आंकड़ों के अनुसार, हिमाचल प्रदेश की कुल उर्वरक खपत 2021-22 में 55.98 हजार मीट्रिक टन, 2022-23 में 57.85 हजार मीट्रिक टन और 2023-24 में 52.38 हजार मीट्रिक टन थी। इसमें से फास्फोरस आधारित उर्वरक क्रमशः 9.17, 10.89 और 10.00 हजार मीट्रिक टन था।
विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. संजीव चौहान ने जोर देकर कहा कि विश्वविद्यालय की सिफारिशों का उद्देश्य फास्फोरस उर्वरक के उपयोग को अनुकूलित करना है, जिससे फसल उत्पादकता से समझौता किए बिना उर्वरक व्यय को संभावित रूप से कम किया जा सके।