Saturday, April 27, 2024
Follow us on
-
विशेष

जमीन में जहर झोंकने की जरूरत नहीं, प्राकृतिक खेती लाएगी खुशहाली

-
हिमालयन अपडेट ब्यूरो | October 01, 2019 01:24 PM


प्राकृतिक खेती को अपनाकर युवाओं ने दिखाई नई राह
लगभग शून्य बजट में हो रही है बंपर फसल
प्राकृतिक खेती, खुशहाल किसान योजना से पारंपरिक खेती अपनाने लगे किसान
कुल्लू,
महंगे रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों तथा खरपतवार नाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से हमारे खेतों, बागानों, जलाशयों और आबोहवा में ही नहीं, बल्कि हमारे शरीर के भीतर भी जहर घुलता जा रहा है। विश्व भर में इसके बहुत ही गंभीर परिणाम सामने आ रहे हैं। तेजी से फैलते कैंसर जैसे जानलेवा रोग हों या पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं की कई प्रजातियों का लुप्त होना या फिर जमीन की उर्वरता तेजी से कम होना। इस तरह की गंभीर समस्याओं ने जहां विश्व भर के वैज्ञानिकों और संपूर्ण मानवता के समक्ष एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है, वहीं तथाकथित आधुनिक एवं वैज्ञानिक खेती पर ही सवालिया निशान लगा दिए हैं। महंगे उर्वरकों और कीटनाशकों से खेती की लागत में भी भारी वृद्धि हुई और किसानों के लिए यह घाटे का सौदा साबित हो रही है। ऐसी परिस्थितियों में अब इस महंगी और जहरयुक्त खेती को पूरी तरह अलविदा कहने तथा प्राकृतिक खेती को अपनाने का समय आ गया है।
   इस दिशा में हिमाचल प्रदेश ने एक सराहनीय पहल की है। प्राकृतिक खेती को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व में प्रदेश सरकार ने एक ऐसा कदम उठाया है, जोकि आने वाले वर्षों में कृषि के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित होगा। किसानों को प्राकृतिक खेती की ओर प्रेरित करने के लिए प्रदेश सरकार ने प्राकृतिक खेती, खुशहाल किसान योजना आरंभ की है। इस योजना के तहत किसानों को बड़े पैमाने पर प्रशिक्षित किया जा रहा है तथा घर में ही प्राकृतिक खेती के आवश्यक संसाधन जुटाने के लिए हजारों रुपये का अनुदान दिया जा रहा है।
    कुल्लू जिला में कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन अभिकरण (आतमा) की प्रेरणा और प्रोत्साहन से बड़ी संख्या में किसान विशेषकर युवा प्राकृतिक खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इन्हीं किसानों में से एक हैं बजौरा के निकटवर्ती गांव नरैश के दीवान चंद ठाकुर।
  कई वर्षों से अपने खेतों और बागीचों में महंगे एवं जहरीले रासायनिक उर्वरकों-कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे दीवान चंद का खेती का खर्चा साल दर साल बढ़ता ही रहा था और पैदावार में कोई खास वृद्धि नहीं हो पा रही थी। जमीन और फल-सब्जियों में कीटनाशकों के जहर की मात्रा बढ़ती ही जा रही थी।
 वर्ष 2018 में कृषि विभाग और आतमा के अधिकारियों के संपर्क में आने पर दीवान चंद को प्राकृतिक खेती और इसको प्रोत्साहित करने के लिए आरंभ की गई प्रदेश सरकार की योजना का पता चला। उन्होंने डा. सुभाष पालेकर से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद गेहूं, जौ, मटर, माश और कुल्थ के खेतों में केवल देसी गाय के गोबर, गोमूत्र तथा घर में उपलब्ध अन्य सामग्री से तैयार देसी खाद जीवामृत और धनजीवामृत का ही प्रयोग किया। गोबर-गोमूत्र एकत्रित करने के लिए उन्होंने आतमा परियोजना से अनुदान प्राप्त करके गौशाला के फर्श को पक्का करवाया। खाद तैयार करने के लिए ड्रम पर भी उन्हें सब्सिडी मिली।
  जीवामृत और धनजीवामृत के प्रयोग से दीवान चंद के खेतों में विभिन्न फसलों की पैदावार में काफी वृद्धि हुई, जबकि खेती का खर्चा लगभग न के बराबर ही रहा। इसी जमीन पर वह प्रति बीघा लगभग साढे पांच हजार रुपये के रासायनिक उर्वरक तथा कीटनाशकों का प्रयोग करते थे और पैदावार भी कम होती थी। प्राकृतिक खेती से दीवान चंद के खेतों की पैदावार में 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई। अब वह अपनी बाकी बची जमीन पर भी प्राकृतिक खेती करने जा रहे हैं और अन्य किसानों को भी प्रेरित कर रहे हैं।

  इसी प्रकार, मणिकर्ण घाटी में शाट के निकटवर्ती गांव शौरन के विजय सिंह भी आतमा परियोजना की प्रेरणा और अनुदान से मई 2018 से प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। उन्होंने जून 2019 में पालमपुर में डा. सुभाष पालेकर से भी प्रशिक्षण प्राप्त किया। पहले विजय सिंह लगभग 15 बीघा भूमि पर करीब 41 हजार रुपये के रासायनिक उरर्वक और कीटनाशकों का प्रयोग करते थे लेकिन पिछले सीजन में उन्होंने घर पर ही जीवामृत और घनजीवामृत खाद एवं कीटनाशक तैयार किया, जिस पर मात्र 4800 रुपये खर्च आया। इससे उनकी पैदावार और आय में भारी वृद्धि हुई। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग करने पर विजय सिंह को एक सीजन में ढाई से तीन लाख रुपये आय हो रही थी, जबकि प्राकृतिक खेती से उसकी आय 4 से साढे चार लाख तक पहुंच गई। विजय सिंह का कहना है कि प्राकृतिक खेती ने तो उनकी तकदीर ही बदल दी है।


  विजय सिंह की तरह ही भुंतर के निकटवर्ती गांव भुईंन के स्वर्ण जसरोटिया ने भी प्राकृतिक खेती में हाथ आजमाए और उन्हें भी बहुत ही उत्साहजनक परिणाम मिले। फरवरी 2019 में उन्होंने प्राकृतिक खेती आरंभ की और आतमा के माध्यम से जून में पालमपुर में डा. सुभाष पालेकर से ट्रेनिंग ली। उन्होंने एक बीघा भूमि पर टमाटर लगाए और केवल घर में तैयार की गई खाद और स्प्रे का ही इस्तेमाल किया। इस सीजन में टमाटर की बंपर फसल हुई। जिस खेत में रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के प्रयोग से टमाटर के अधिकतम 100 क्रेट पैदा होते थे, उसी खेत में प्राकृतिक खेती से टमाटर के 130 से अधिक क्रेट निकले। यानि एक फसल में ही स्वर्ण जसरोटिया को पिछले सीजन की तुलना में लगभग बीस हजार रुपये ज्यादा फायदा हुआ।
  इस प्रकार प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘प्राकृतिक खेती, खुशहाल किसान’ का लाभ उठाकर कुल्लू जिला के कई किसानों ने कृषि के क्षेत्र में एक नई शुरुआत की है। इससे वे न केवल खेती का खर्चा घटाने तथा अपनी आय बढ़ाने में कामयाब हुए हैं, बल्कि उपभोक्ताओं को स्वस्थ एवं जहरमुक्त खाद्यान्न, फल और सब्जियां उपलब्ध करवा रहे हैं। प्राकृतिक खेती को अपना कर ये किसान पर्यावरण के संरक्षण और जमीन की उर्वरता बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। आतमा परियोजना की प्रेरणा और प्रोत्साहन से ये किसान कृषि के क्षेत्र में एक नई इबारत लिख रहे हैं।



देशी गाय और अन्य कार्यों के लिए हजारों की सब्सिडी
   आतमा कुल्लू के परियोजना निदेशक आरसी भारद्वाज ने बताया कि देसी गाय पर 50 प्रतिशत और अधिकतम 25000 रुपये तक अनुदान दिया जाता है। गौशाला के फर्श को पक्का करने के लिए भी किसानों को 80 प्रतिशत और अधिकतम 8000 रुपये तक सब्सिडी का प्रावधान किया गया है। 200 लीटर के ड्रम पर 75 प्रतिशत और अधिकतम 750 रुपये तक सब्सिडी दी जा रही है। प्राकृतिक खेती से तैयार की गई फसलों के भंडारण हेतु संसाधन भंडार के निर्माण पर दस हजार रुपये तक अनुदान दिया जा रहा है। भारद्वाज ने बताया कि कुल्लू जिला में आतमा परियोजना के तहत प्राकृतिक खेती के प्रशिक्षण के लिए दो-दो दिन के लगभग 100 शिविर आयोजित किए जा चुके हैं। जिला के 900 से अधिक किसान प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक और प्राकृतिक खेती के विशेषज्ञ पद्मश्री डा. सुभाष पालेकर से भी प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं।

-
-
Have something to say? Post your comment
-
और विशेष खबरें
उप राजिक मोहर सिंह छींटा सेवानिवृत वन चौकीदार से BO बनने तक का संघर्षपूर्ण सफर । नाम सक्षम ठाकुर योगा में हिमाचल और परिवार का नाम कर रहा ऊँचा विदेश से नौकरी छोड़ी, सब्जी उत्पादन से महक उठा स्वरोजगार सुगंधित फूलों की खेती से महकी सलूणी क्षेत्र के किसानों के जीवन की बगिया मौत यूं अपनी ओर खींच ले गई मेघ राज को ।हादसास्थल से महज दो किलोमीटर पहले अन्य गाड़ी से उतरकर सवार हुआ था हादसाग्रस्त आल्टो में । पीयूष गोयल ने दर्पण छवि में हाथ से लिखी १७ पुस्तकें. शिक्षक,शिक्षार्थी और समाज; लायक राम शर्मा हमें फक्र है : हमीरपुर का दामाद कलर्स चैनल पर छाया पुलिस जवान राजेश(राजा) आईजीएमसी शिमला में जागृत अवस्था में ब्रेन ट्यूमर का सफल ऑपेरशन किसी चमत्कार से कम नहीं लघुकथा अपने आप में स्वयं एक गढ़ा हुआ रूप होता है। इसे यूँ भी हम कह सकते हैं - गागर में सागर भरना
-
-
Total Visitor : 1,64,73,956
Copyright © 2017, Himalayan Update, All rights reserved. Terms & Conditions Privacy Policy