गुरुग्राम,
विगत रविवार 'अहम् ब्रह्मास्मि-नव उद्घोष' संस्था के तत्वावधान में एस्टर्स स्कूल , सेक्टर 45, गुरुग्राम के ऑडिटोरियम में काव्य संगोष्ठी का भव्य आयोजन हुआ।
सर्वप्रथम माँ शारदे के चरणों में पुष्पांजलि अर्पित कर दीप प्रज्वलित किया गया। तत्पश्चात् सुमधुर गायिका अंजलि श्रीवास्तव द्वारा सरस्वती वंदना की सुंदर प्रस्तुति हुई।
उसके बाद संस्थापिका दीपशिखा श्रीवास्तव 'दीप' द्वारा उपस्थित सभी साहित्यकारों का शाब्दिक स्वागत किया गया।
संस्था के मीडिया पार्टनर रूप में हिमालयन अपडेट न्यूज़ ने अपनी सहभागिता दर्ज की!
जहाँ कार्यक्रम का बेहतरीन संचालन संस्था की संस्थापिका दीपशिखा श्रीवास्तव 'दीप' द्वारा किया गया वहीं कार्यक्रम में तकनीकी सहयोग मास्टर द्विज श्रीवास्तव के द्वारा अत्यंत कुशलतापूर्वक किया गया।
संस्था की संस्थापिका दीपशिखा श्रीवास्तव तथा संरक्षक नीरज श्रीवास्तव ने वहां उपस्थित सभी साहित्यकारों को माला पहना कर सम्मानित किया।
कार्यक्रम में जहाँ गौरवमयी उपस्थिति रही दूरदर्शन केंद्र नई दिल्ली के पूर्व निदेशक अमरनाथ अमर की वहीं सी.सी. स्कूल की डायरेक्टर व प्रधानाचार्या निर्मल यादव तथा एस्टर स्कूल की प्रधानाचार्या उर्मिल यादव का भी सानिध्य प्राप्त हुआ।
कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध कवि त्रिलोक कौशिक, अनिल श्रीवास्तव, अंजलि श्रीवास्तव, सुजीत कुमार, विनय कुमार, शकुंतला मित्तल, ज्योत्स्ना कलकल, ऋतंभरा मिश्रा, राजपाल यादव, लोकेश यादव, अर्चना सिन्हा, सविता स्याल, शारदा मित्तल, प्रीति मिश्रा, बिमलेन्दु सागर, सुशीला यादव, सरोज गुप्ता, संयोगिता यादव, मोनिका शर्मा, डॉ. शैलजा दूबे, रश्मि ममगाई, रवि शर्मा तथा रेखा सिंह ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुतियों से आयोजन को भव्यता प्रदान की।
संस्था के ऑफिशियल फेसबुक पेज पर कार्यक्रम का सीधा लाइव प्रसारण किया गया।
कार्यक्रम के अंत में संस्था की संस्था की संस्थापिका दीपशिखा श्रीवास्तव 'दीप' ने वहाँ उपस्थित सभी साहित्यकारों का आभार प्रकट कर धन्यवाद ज्ञापित करते हुए संगोष्ठी का समापन किया।
कार्यक्रम का समापन स्वादिष्ट जलपान के द्वारा हुआ।
इस अवसर पर सभी प्रतिष्ठित साहित्यकारों ने अनेक विधाओं में रचित अपनी अपनी रचनाओं द्वारा इस आयोजन को यादगार बना दिया।
अमरनाथ अमर-
जब सूरज आग बरसाने लगे ,
जब जीवन की सारी खुशियां मुरझाने लगे, तुम अपनी बाँहों का सहारा देना।।
त्रिलोक कौशिक-
देवदास की पारो देखी है तुमने।
तुमने उसकी हीर नहीं देखी।।
अनिल श्रीवास्तव-
फल आए न आए काटते नहीं बनता हरी डाली आम की!
तुम रहो न रहो हटाते नहीं बनता पट्टिका कुलपुरुष के नाम की!!
दीपशिखा श्रीवास्तव'दीप'-
चाहती हूं जमीं आसमान एक कर दूँ।
चाहती हूं हर ओर मैं उजाला भर दूं।।
बस वक्त और हौसले में कुछ ठनी हुई है-
हौसले को थोड़ा वक्त चाहिए और वक्त को थोड़ा हौसला।
लोकेश चौधरी-
उठो भारत की वीर नरियो मैं तुम्हें जगाने आई हूं।
मैं नारी हूं नारी का इतिहास बताने आई हूं ।।
बिमलेन्दु सागर-
मेरी मसरूफ़ियत ने मुझको इससे बेख़बर रखा।
मेरे होने न होने से किसी को फ़र्क पड़ता है।।
राजपाल यादव-
उभरी बनके चिंगारी आज़ादी के संग्राम की।
उस रानी को याद रखेगी जनता हिंदुस्तान की।
नतमस्तक न हुई कभी अंग्रेजों की ज़िद के आगे,
अमिट रहेगी गाथा रानी झाँसी के बलिदान की।
शकुंतला मित्तल-
दूर रह कर भी कहाँ ,दूर रहा जाता है।
ख्याल घर का तो रह रह के, आ तड़पाता है।।
शारदा मित्तल-
मेरा रंग भी तू मेरा रूप भी तू।
मैं तुझमें हूं और मुझमें तू।।
सविता स्याल-
प्रेम तुम्हें शब्दों में बांधना असंभव है।
इसलिए कोई भी कलम तुम्हें व्यक्त नही कर पाती।।
विनय कुमार-
अब ये ज़ुल्मत के आलम और नहीं देखे जाते,
आवाम के ये कत्ल-ए-आम नहीं देखे जाते।
वो बात तो करते हैं चैन-ओ-अमन की,
मगर उनके बेरुख़ी के तेवर नहीं देखे जाते।।
संयोगिता यादव-
बिना बोले जो सबके दिल की सुनता है।
बस मेरे दिल की बात वो नहीं सुनता।।
सुजीत कुमार-
तेरी आँखों को झील, रुख को कमल क्यों कहता
या तेरे हुस्न को महताब असल क्यों कहता ,
मैं जो पागल नहीं होता तो ग़ज़ल क्यों कहता।।
रश्मि ममगाई-
युग युग तक रहे भारत हमें वो काम करना है
पढ़कर राम को लगता हमको हमें भी राम बनना है
रवि शर्मा-
हिन्दू न किसी को न मुसलमान लिखेंगे।
हर आदमी को हम तो बस इंसान लिखेंगे।।
जय हिन्द बोलते हुए जो देश पे मिटे-
हर छंद में हर राग में हम मान लिखेंगे।।
कार्यक्रम का समापन स्वादिष्ट जलपान के द्वारा हुआ।
इस अवसर पर सभी प्रतिष्ठित साहित्यकारों ने अनेक विधाओं में रचित अपनी अपनी रचनाओं द्वारा इस आयोजन को यादगार बना दिया।