देव दीवाली, जिसे देव दीपावली भी कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो विशेष रूप से उत्तर भारत में, विशेषकर वाराणसी में मनाया जाता है। यह कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जो दिवाली के पंद्रह दिन बाद आती है। देव दीवाली के अवसर पर यह माना जाता है कि देवता धरती पर आते हैं और गंगा नदी के किनारे दीप जलाकर इस पावन दिन का स्वागत करते हैं।
इस दिन वाराणसी के घाटों को दीपों की जगमगाहट से सजाया जाता है और गंगा आरती का आयोजन होता है। स्थानीय लोग और पर्यटक बड़ी संख्या में घाटों पर आते हैं, दीपदान करते हैं, गंगा नदी में नावों पर सवारी करते हैं और इस अलौकिक दृश्य का आनंद लेते हैं।
देव दीवाली का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व भी है। इसे भगवान शिव की पूजा का दिन माना जाता है, और कई भक्त इस अवसर पर व्रत रखते हैं, विशेष पूजा और अनुष्ठान करते हैं।
गुरुपरब, जिसे गुरुपर्व या गुरु नानक जयंती भी कहा जाता है, सिख धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु, गुरु नानक देव जी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। गुरुपरब का आयोजन कार्तिक पूर्णिमा के दिन होता है, जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि को आता है। गुरुपरब न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है बल्कि यह गुरु नानक देव जी के संदेशों को याद करने और अपनाने का भी अवसर है, जिसमें सभी के प्रति प्रेम, सेवा, समानता, और भाईचारे की भावना का संदेश शामिल है।
देव दीवाली न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है बल्कि सांस्कृतिक और पर्यटन के दृष्टिकोण से भी इसका बहुत महत्त्व है। वाराणसी में इस दिन का आयोजन देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं, जिससे यह एक अद्वितीय सांस्कृतिक पर्व बन जाता है।