भारतीय परिपेक्ष में शून्य भेदभाव दिवस (Zero Discrimination Day): डॉ विनोद नाथशून्य भेदभाव दिवस(Zero Discrimination Day) हर साल 1 मार्च को मनाया जाता है।
दुनिया भर में मनाया जाने वाला यह दिन इस बात का संदेश देता है कि सभी के साथ सम्मान के साथ व्यवहार किया जाए !
इस दिन का उद्देश्य यह संदेश देना है कि हर इंसान को समान अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए, चाहे उसकी जाति, लिंग, धर्म, आयु, यौन झुकाव, विकलांगता या किसी भी आधार पर भेदभाव क्यों न हो।
यह दिवस पहली बार 1 मार्च 2014 को मनाया गया था, जिसे संयुक्त राष्ट्र और UNAIDS (यूएन एड्स) ने शुरू किया था। इसका मकसद एचआईवी/एड्स के मरीजों के प्रति भेदभाव खत्म करना था, लेकिन अब यह हर प्रकार के भेदभाव के खिलाफ एक वैश्विक अभियान बन चुका है।
अभी 2025 की थीम घोषित नहीं हुई है, लेकिन हर साल यह अलग-अलग सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करता है, जैसे—स्वास्थ्य में समानता, शिक्षा में भेदभाव खत्म करना, आदि।
शून्य भेदभाव दिवस का प्रतीक 'तितली' है, जो बदलाव और सकारात्मकता का प्रतीक मानी जाती है।
अगर भारतीय परिवेश और परिपेक्ष में देखा जाए तो यह दिवस बहुत ही महत्व वाला बन जाता है क्योंकि हमारे देश में विभिन्न प्रकार के भेदभाव समाज को ग्रसित किए हुए हैं इसमें प्रमुख जातिगत विचारधारा है। इस कारण हमारे धर्म और संस्कृति को गहरा आघात पहुंचता है और हमारे सनातन संस्कृति मनोबल गिरता है। बढ़ते हुए वैश्वीकरण और समय के बदलाव के हिसाब से हमको अपने विकारों पर काबू पाकर के सतत और समरस समाज बनाने के लिए प्रयास करना
चाहिए।