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कविता

अफसोस रहेगा

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December 29, 2020 06:57 PM
अफसोस रहेगा 
 
जिदंगी को प्यार से संजो पाता।
खुशीयों का एक छोटा-सा ही सही।
पर एक घर बना पाता।
 
समझ कर भी,न-समझी का खेद रहेगा।
 
अफसोस रहेगा।
 
अंधेरे दूर हो जायें,
दिलदिमाग से भरमों के।
 
अंधविश्वास की सोच से,
निकाल कर,
जो तर्क समझा पाता।
 
चिराग तो बहुत जलायें।
 
लेकिन........?
चिरागों तले जो रहे अंधेरे,
उन्हीं का भेद  रहेगा।
अफसोस रहेगा।
 
जिदंगी ईश्वर का अमूल्य नेमत।
 
नही दे सकता।
किसी बाबा का,कोई धागा।
 
हिम्मत से संवारो ,
अपने जीवन को।
 
न खोना, 
बहमों में अपने कल को।
 
भटकन को अपनी समेट कर।
ईश्वर का सत्य संवाद रहेगा।
और तब तक वेद रहेगा।
फिर न कोई ,
खेद और न भेद रहेगा।
 
 समझ जायें तो अच्छा है।
फिर न कोई अफसोस रहेगा।
 
 
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