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रंगभेद की मानसिकता से नहीं उभर पा रहा है पर्वतीय क्षेत्र।(सत्य घटना पर आधारित)

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डॉ विनोद नाथ | February 28, 2024 10:53 AM
फोटो साभार: गूगल

मैं हिमाचल के शिमला में ही पैदा हुआ पिछले काफी समय से हमारा परिवार चार पीढ़ियों से यहां रह रहा है। कुछ समय पहले से मैं कारोबार के सिलसिले मे प्रदेश से बाहर था प्रदेश से बाहर था किंतु अक्सर मेरा यहां आना जाना लगा रहता है और साथ ही क्योंकि मेरा एक जुड़ाव पर्वतीय क्षेत्र से रहा है शिमला आना मेरे लिए एक बहुत सुखद अनुभव रहता है।

एक बार मुझे किसी काम के सिलसिले में एक प्रादेशिक विभाग में जाना पड़ा।

मेरे गेहूंए रंग के कारण जो सवाल मुझसे अक्सर पूछा जाता है कि भाई साहब आप कहां के हो?

मेरा जवाब रहता है मैं हिमाचल प्रदेश का ही निवासी हूं।

अक्सर यह सुनने को मिलता है

 "लगता तो नहीं"

 बात छोटी है परंतु इसके पीछे छुपी हुई मानसिकता के कारण में बहुत आहत हो जाता हू।

क्या करने की लोग अक्सर यह सवाल पूछते हैं? क्या उन्हें यह लगता है कि हम देश के वासी नहीं है क्या गेहुआ रंग हो जाना रंग हो जाना कोई नकारात्मक वस्तु है ?

हालांकि यह प्रश्न पूछा ही नहीं जाना चाहिए जबकि मेरे पास हिमाचली होने के लिए सभी प्रमाण है। यह मानसिकता बड़ी दुखदाई करने वाली है।

बड़े ही दुख की बात है कि शिमला जो की अच्छे स्तर पर बुद्धिजीवी वर्ग का एक क्षेत्र है। इस तरह से किसी को रंग विशेष के रूप में चिन्हित करना सही नहीं है शिमला में खास तौर पर लोग इस कुत्सित मानसिकता से ग्रसित हैंl हमें यह समझना चाहिए कि यह देश प्रदेश हम सभी भारतवासियों का है ना कि किसी एक विशिष्ट रंग रखने वाले व्यक्तियों का।

दूसरी तरफ मैं यह समझता हूं कि अभी तक बातचीत करने के सही तरीके से शिमला वासी अनभिज्ञ हो चुके हैं इस बारे में विचार किया जाना चाहिए और यह समझना चाहिए कि हम सभी भारतवासियों को एक दूसरे के साथ आपसी सामने से और समरसता का विचार पैदा करना चाहिए और ऐसी भावना रखनी चाहिए कि हम सभी भारतवासी एक हैं बिना किसी रंगभेद या किसी क्षेत्रवाद के। इस विषय में हमें सामाजिक और व्यावसायिक स्तर पर अच्छे वैचारिक मापदंड तय करने की आवश्यकता है और साथ ही हमें एक दूसरे के प्रति सम्मान व परस्पर आधार की भावनाओं को जागृत करना चाहिए और ऐसी शब्दावली का प्रयोग ना करें जिससे कि किसी के व्यक्तित्व या फिर किसी प्रकार से अपमान हो।

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