समाज के प्रति डॉक्टरों के समर्पण और निस्वार्थ सेवा का सम्मान करने के लिए भारत में राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस मनाया जाता है। यह दिन चिकित्सक और पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डॉ. बिधान चंद्र रॉय की जयंती भी है।
डॉ. बी.सी. रॉय को उनकी चिकित्सा सेवाओं और सामाजिक योगदान के लिए याद किया जाता है। इस दिन का उद्देश्य डॉक्टरों के योगदान को पहचानना और उनकी निस्वार्थ सेवा के प्रति आभार व्यक्त करना है। डॉ. बी.सी. रॉय का जन्म 1 जुलाई 1882 को हुआ था और उनकी मृत्यु भी इसी दिन 1962 में हुई थी। उन्हें 1961 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
डॉक्टरों का समाज में योगदान केवल चिकित्सा सेवाओं तक सीमित नहीं है; वे समाज के स्वास्थ्य और कल्याण को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रयासरत रहते हैं। डॉक्टर का पेशा अत्यधिक सम्मानित और चुनौतीपूर्ण होता है, जिसमें अनेक जिम्मेदारियाँ और विविधतापूर्ण कार्य शामिल होते हैं। यह पेशा चिकित्सा ज्ञान, नैतिकता, सहानुभूति, और उच्च पेशेवर मानकों पर आधारित है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने शुक्रवार को लोकसभा को बताया कि देश में डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात 1:834 है जो डब्ल्यूएचओ के मानक 1:1000 से बेहतर है लेकिन भारत में अस्पतालों की कमी है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, और कई मौजूदा स्वास्थ्य सुविधाओं में बुनियादी उपकरणों और संसाधनों की कमी है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफ़ाइल के अनुसार, भारत में प्रति 1000 जनसंख्या पर केवल 0.9 बिस्तर हैं और जिनमें से केवल 30% ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। विश्व स्वास्थ्य सांख्यिकी 2021 के अनुसार, भारत में औसत जीवन प्रत्याशा 70.8 वर्ष है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, भारत में शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) 2019 से 2021 तक प्रति 1,000 जन्म पर 35 थी, जो 2015-16 की संख्या से 15 प्रतिशत कम है।
2030 तक भारत में दस लाख अतिरिक्त एमबीबीएस डॉक्टर होंगे; वर्तमान में प्रति वर्ष 50,000 की दर से वृद्धि हो रही है। (NCBI) चिकित्सा डॉक्टरों की कमी की धारणा के विपरीत, भारत में स्वास्थ्य में मानव संसाधन में कुप्रबंधन के कारण नव योग्य चिकित्सकों का एक बड़ा वर्ग निष्क्रिय स्थिति में काफी वर्ष बिता रहा है। सार्वजनिक क्षेत्र में योग्य डॉक्टरों के लिए रोजगार के बहुत कम अवसर हैं; वहीं शहरी निजी अस्पतालों में एमबीबीएस डॉक्टरों का औसत वेतन बहुत कम है। विरोधाभासी रूप से, 1.4 अरब आबादी वाले देश में चिकित्सा पेशेवरों की कोई वास्तविक मांग नहीं है।
जबकि लोकप्रिय धारणा यह है कि युवा डॉक्टर सामुदायिक सेवा के लिए इच्छुक नहीं हैं, सेवा वितरण की प्रक्रिया में चिकित्सा डॉक्टरों की भागीदारी के प्रति सार्वजनिक क्षेत्र के साथ-साथ उद्योग की मंशा और क्षमता की वास्तविकता की जांच की आवश्यकता है।
चिकित्सा उद्योग की आक्रामक अनियमित व्यावसायिक प्रथाओं के कारण, फार्मास्युटिकल और उपभोज्य चिकित्सा उत्पादों की औद्योगिक खपत के लिए कुप्रथा और भ्रष्टाचार का माहौल बन गया है।
इन सभी बातों के मध्य नजर हमारे देश में चिकित्सा का व्यवसाय है गंभीर स्थिति में है इसके लिए एक सही नीति का अवलोकन किया जाना चाहिएताकि हमारे देश केसभी वर्ग को सुविधा मिल सके औरहम स्वस्थ भारत कानिर्माण कर सकेI