विश्व जनसंख्या दिवस हर साल 11 जुलाई को मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य जनसंख्या के मुद्दों के प्रति जागरूकता बढ़ाना और जनसंख्या वृद्धि, परिवार नियोजन, लैंगिक समानता, मातृ स्वास्थ्य, और मानवाधिकारों के महत्व को समझाना है।
यह दिवस 1989 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की गवर्निंग काउंसिल द्वारा स्थापित किया गया था। तब से हर साल विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता हैI 1994 में काहिरा में आयोजित जनसंख्या और विकास पर ऐतिहासिक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (आईसीपीडी) ने जनसंख्या और विकास के मुद्दों पर वैश्विक सोच को बदल दिया और लोगों की गरिमा और अधिकारों को सतत विकास के केंद्र में रखते हुए एक साहसिक एजेंडा परिभाषित किया। आज, प्रगति को बहुआयामी संकटों, महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों और विकल्पों पर पीछे हटने, कोविड-19 महामारी के प्रभाव और यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकार एजेंडे के ध्रुवीकरण से खतरा है।
अनुमान है कि 2060 के दशक के मध्य तक भारत की जनसंख्या अपने चरम पर होगी और इसकी जनसंख्या लगभग 1.7 बिलियन होगी। अनुमान है कि 2100 के बाद तक यह दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बना रहेगा, जो कि अब तक का सबसे दूर का वर्ष है जिसके लिए जनसंख्या अनुमान लगाए गए हैं।
हमारा देश चीन को पछाड़कर दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश बन चुका है और वह अपनी तेज़ी से बढ़ती आबादी के कारण कई चुनौतियों का सामना कर रहा हैi भारत की आबादी 1.4 अरब हो चुकी है और हर साल इसमें लगभग 1 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो रही हैI यह जनसांख्यकीय बदलाव जटिल है और भारत में मानव विकास पर इसका दूरगामी प्रभाव पड़ेगाi ऐसा अनुमान है कि 2030 तक यह बढ़कर 1.5 अरब और 2050 तक 2 अरब के पार हो जाएगीI
भारत की बढ़ती जनसंख्या मानव विकास पर बहुआयामी प्रभाव डालती है, जो अर्थव्यवस्था, समाज और पर्यावरण जैसे विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित कर रही हैI परिवार का स्वास्थ्य, बाल उत्तरजीविता और बच्चों की संख्या आदि माता-पिता (विशेषकर माता) के स्वास्थ्य और शिक्षा के स्तर से गहराई से संबद्ध हैं। इस प्रकार कोई दंपति जितना निर्धन होगा, उसमें उतने अधिक बच्चों को जन्म देने की प्रवृत्ति होगी। इस प्रवृत्ति का संबंध लोगों को उपलब्ध अवसरों, विकल्पों और सेवाओं से है।
हालाँकि जनसंख्या वृद्धि ने कई चुनौतियों को जन्म दिया है किंतु इसके नियंत्रण के लिये क़ानूनी तरीका एक उपयुक्त कदम नहीं माना जा सकता। भारत में कानून का सहारा लेने के बजाय जागरूकता अभियान, शिक्षा के स्तर को बढ़ाकर तथा गरीबी को समाप्त करने जैसे उपाय करके जनसंख्या नियंत्रण के लिये प्रयास करने चाहिये।
परिवारों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाकर तथा उनके जीवन स्तर को ऊँचा उठाकर जनसंख्या वृद्धि को कम किया जा सकता है। प्रायः ऐसा देखा गया है कि उच्च जीवन स्तर वाले लोग छोटे परिवार को प्राथमिकता देते हैं।