हमीरपुर,
बिहार में चमकी बुखार और लीची को लेकर फैले भ्रम को लेकर हिमाचल में भी लीची की बिक्री प्रभावित हुई है । इससे दुकानदार व बागवान परेशान दिख रहे हैं । लीची की बिक्री में आई मंदी से उन बागवानों की हवाईयाँ उड़ गयी हैं जिन्होंने व्यापक स्तर पर लीची के बाग़ लगाए हैं । फलों की रानी के तौर पर पहचाने जाने वाला रसीला फल 'लीची' विवादों के केंद्र में है। दरअसल, डॉक्टरों के साथ बिहार सरकार के कुछ अधिकारियों का कहना है कि बच्चों की मौत के पीछे उनका लीची खाना भी एक कारण है। इसका असर यह हुआ है कि बिहार समेत देश भर में लीची को संदिग्ध नजर से देखा जा रहा है। हालात ये हो गए हैं कि लोगों ने लीची खरीदना तक बंद कर दिया है। इस वजह से दुकानदारों को खरीदार नहीं मिल रहे हैं और इस फल के कारोबार पर भी असर पड़ रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक बीते एक हफ्ते में हमीरपुर , काँगड़ा , मंडी , ऊना सहित प्रदेश के अन्य इलाक़ों में लीची की बिक्री में करीब 30 फीसदी तक की गिरावट आई है। माना जाता है कि लीची का सीज़न केवल 20 से 25 दिन का होता है । इसके बाद लीची ख़राब होना शुरू हो जाती है । इस बार लीची की बम्पर फ़सल होने से बागवानों को अच्छा मुनाफ़ा होने की उम्मीद थी लेकिन चमकी बुखार के कारणों में लीची को लेकर फैली अफ़वाह ने बागवानों और फल विक्रेताओं की परेशानी बढ़ा दी है । फलों की दुकानों में लीची तो है , लेकिन ख़रीददार नहीं मिल रहे हैं।
लीची नहीं ,कुपोषण ज़िम्मेदार
बाग़वानी विशेषज्ञ यह मानते हैं कि लीची में ऐसा कोई तत्व नहीं होता जिससे चमकी बुखार हो । बिहार में बच्चों के मरने की बड़ी वजह कुपोषण माना जा रहा है । इस बारे में बाग़वानी विभाग के उपनिदेशक डॉक्टर पवन ठाकुर ने बताया कि जिन क्षेत्रों में कोहरा नहीं पड़ता और पानी की सुविधा है , वहाँ लीची की खेती को बढ़ाने के प्रयास जारी रहेंगे। उन्होंने माना कि लीची को लेकर उठे भ्रम को लेकर बागवानों को मंदी के दौर से गुज़रना पड़ रहा है।