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धर्म संस्कृति

पवित्र तीर्थस्थल चूड़धार-वचन के भूखे हैं भगवान भोलेनाथ

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बालम गोगटा, जिला प्रमुख, ब्यूरो हिमालयन अपडेट | February 20, 2020 05:22 PM
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि ।
 
चौपाल 
 
सुन्दर प्रकृति की गोद में विराजमान देवभूमि हिमाचल प्रदेश में अनेकों पावन तीर्थस्‍थल हैं। जिनके दर्शनों के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंचते हैं। इन्‍हीं में से एक बेहद खूबसूरत  तीर्थ स्‍थान जो कि सुंदर ,पावन व मनमोहक चूड़धार पर्वत है । यह पर्वत हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में स्थित है। सिरमौर भ्रमण की शुरूआत धार्मिक स्थलों से करना उचित है । 
चूड़धार पर्वत समुद्र तल से लगभग 11965 फीट(3647 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है । यह पर्वत सिरमौर जिले की सबसे ऊंची चोटी है।
चुडधार, आमतौर पर चूड़ीचांदनी (बर्फ की चूड़ी) के रूप में जाना जाता है। 
हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में सबसे ऊंची चोटी चूड़धार को ही शिरगुल महाराज के नाम से जाना जाता है। बर्फ से ढकी चोटियों में स्थित केवल शिवलिंग की प्रतिमा स्तिथ है जो कि अत्यंत मनमोहक है ।
चोटी पर ‘शिरगुल महाराज’ मंदिर की स्‍थापना की गई है। इन्‍हें सिरमौर और चौपाल का देवता माना जाता है।यह मंदिर प्राचीन शैली में बना है, जिससे इसके स्‍थापना काल का पता चलता है। 
शिखर के नीचे, शिव (चैरोचेस्वर महादेव) को समर्पित एक लिंगम के साथ देविर-छत, एक मंजिला, शिरगुल का चौकोर मंदिर है। जहां श्रावण माह में भक्तों की भीड़ उमड़ी रहती है । इस प्राचीन मंदिर में भक्त रात्रि जागरण व नृत्य करते हैं ।
 
चूड़धार मंदिर से संबंधित एक पौराणिक कथाएं प्रचलित है जिनसे भगवान भोलेनाथ के चमत्कारों का पता चलता है । उनमें से एक है कि एक बार चूरू नाम का शिव भक्त, अपने पुत्र के साथ इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आया था । पिता-पुत्र दोनों भ्रमण कर ही रहे थे कि अचानक बड़े-बड़े पत्थरो के बीच से एक विशाल व भयानक सर्प बाहर आ गया । वह भयानक सर्प चूरु और उसके पुत्र को मारने के लिए आ ही रहा था कि चूरु और उसके पुत्र ने अपने प्राणों की रक्षा के लिए भगवान शिव से प्रार्थना करते हुए  भगवान शिव से विनती करते हुए  कहा कि हे प्रभु ! हमारे प्राणों की रक्षा कीजिए हम आपके आधीन है हमारी रक्षा कीजिये महादेव । तभी भगवान शिव  के चमत्कार से विशालकाय पत्थरो का एक हिस्सा उस सर्प पर जा गिरा,जिससे वह सर्प मूर्छित हो थो़डे क्षण में वहीं पर मर गया तथा चूरु तथा उसके पुत्र के प्राण बच गए। 
कहा जाता है कि इस घटना के  बाद से ही यहां का नाम चूड़धार पड़ा । तथा लोगों की श्रद्धा इस मंदिर में और अधिक बढ़ गई और यहां के लिए धार्मिक यात्राएं शुरू हो गई । 
एक बहुत बड़ी चट्टान को चूरु का पत्थर भी कहा जाता है जिससे धार्मिक आस्था जुड़ी हूई है‌।
चूड़धार एक पवित्र स्थान है जो भगवान शिव के सबसे खास तीर्थों में से एक माना जाता है।पौराणिक मान्यता के अनुसार
यह भी कहा जाता है कि चूड़धार पर्वत के साथ लगते क्षेत्र मे यानि चूड़धार के पहाड़ी स्थल से भगवान हनुमान जी मूर्क्षित लक्ष्मण जी के लिए संजीवनी बूटी लेकर आए थे।
जड़ी-बूटियों और वनस्पतियां यहां की हिमालय ढलानों की पहचान है । यह पर्वतीय पवित्र स्थल धार्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है । सदियों से यह हिमालयी स्थल जड़ी-बूटी विशेषताओं के लिए प्रमुख माना जाता है ।
चूड़धार के पर्वत पर अनेकों रंग-बिरंगे फ़ूल हैं जिसमें भोलेनाथ की  कृपा की अनोखी छटा देखने को मिलती है ।  
शिरगुल महाराज , शिव के रूप में पूजे जाते हैं। 
उनकी आराधना के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से सावन की बारिश और खड़ी चढ़ाई के बावजूद यहां पहुंचकर मन्नतें मांगते हैं।
चूड़धार में जहां पर विशालकाय शिव प्रतिमा स्थापित हैं,वहां पर पहले प्राकृतिक शिव लिंग हुआ करता था। ऐसा भी कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने अपने हिमाचल प्रवास के दौरान यहां शिव की आराधना के लिए शिवलिंग की स्थापना की थी। इसी स्‍थान पर एक चट्टान भी मिलती है। जिसे लेकर मान्‍यता है कि यहां पर भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते थे। कहा जाता है कि भक्तजन जब यहां पर सिक्का डालते थे, तो लंबे समय तक सिक्के की ध्वनि  सुनाई देती थी। कोई हादसा न हो इसलिए बाद में यहां पर शिवजी की विशाल मूर्ति बनाई गई । भक्तगण श्रध्दापूर्वक  शिवलिंग की पूजा अर्चना करते हैं । 
मंदिर के पास ही दो बावड़ियां हैं। मंदिर जाने वाले सभी श्रद्धालु पहले बावड़ी में स्‍नान करते हैं। उसके बाद मंदिर में प्रवेश करते हैं। एक मान्‍यता यह भी है कि मंदिर के बाहर बनीं दोनों बावड़‍ियों का जल अत्‍यंत पवित्र है। कहा जाता है कि इनमें से किसी भी बावड़ी से दो लोटा जल लेकर सिर पर डालने से सभी मन्‍नतें पूरी हो जाती हैं। यहां का जल बहुत ही शीतल व पवित्र होता है । चूड़धार की इस बावड़ी में भक्‍त ही नहीं बल्कि देवी-देवता भी आस्‍था की डुबकी लगाते हैं। 
इस क्षेत्र में जब भी किसी नए मंदिर की स्‍थापना होती है तब देवी-देवताओं की प्रतिमा को इस बावड़ी के पवित्र जल से स्‍नान कराया जाता है तथा स्नान के  बाद ही उनकी स्‍थापना की जाती है। चूड़धार की बावड़ी में किये गए स्‍नान को गंगाजल की भांति   पवित्र माना जाता है । 
इस पवित्र स्थान के बारे में शास्त्रों में भी यह कहा गया है कि श्रावण महीने में जो भी भक्त शिवालय में जाकर भगवान शिव के दर्शन, पूजा और शिव के महात्म्य का पाठ करता है, वह संसार के सभी सुखों को भोगता है। श्रावण महीने के सोमवार को कांवर में जल भरकर जो भक्त भगवान शिव पर चढ़ाता है और शिव महात्म्य का पाठ करता है या श्रवण करता है, उसकी मन की हर इच्छा पूरी होती है।सिरमौर जिले के सभी दूर दराज के स्थानों से श्रध्दालु भोलेनाथ का दर्शन करने आते हैं व अपनी मनोकामना की पूर्ति हेतु भोलेनाथ से प्रार्थना करने आते हैं । भक्तों का कहना है कि भगवान भोलेनाथ वचन के भूखे होते हैं यदि भक्तों की इच्छा पूरी है तो वे दोबारा प्रभु के दर्शन करने मात्र आ सकते हैं । भोलेनाथ भक्तगण सहित उनके पूरे परिवार पर आजीवन अपनी कृपा बनाए रखते हैं । 
सिरमौर ,चौपाल ,शिमला, सोलन उत्तराखंड के कुछ सीमावर्ती इलाकों के लोग इस पर्वत में असीम धार्मिक आस्था रखते हैं।   
 
दीपावली की अमावस्या तक चूड़धार श्रीगुल मंदिर के लिए भक्तों का तांता लगा होता है।
चूड़धार नाम से इस चोटी पर स्थित भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए हर साल हजारों सैलानी यहां पहुंचते हैं।
चूड़धार में चूड़ेश्वर सेवा समिति की ओर से भंडारे की उचित व्यवस्था की जाती है । 
यहां कि रसोई में सात्विक भोजन मिलता है जो कि मन की शांति, संयम, और पवित्रता का प्रतीक होता है । भोजन में लहसुन व प्याज नहीं पड़ता है क्योंकि  इसके पीछे धार्मिक मान्यताओं का हवाला देते हैं व वैज्ञानिक कारण भी बताते हैं। चूड़ेश्वर सेवा समिति द्वारा रहने के लिए भी सराय की उचित व्यवस्था हैै।
मंदिर के पूजारी व चूड़ेश्वर सेवा समिति की तरफ़ से अत्यंत बर्फ़बारी होने के कारण मई माह तक चूड़धार नहीं आने की सभी पर्यटकों व भक्तों को सलाह दी गई  है ।सर्दियों और बरसात के मौसम में यहां जमकर बर्फबारी होती है। यह चोटी वर्ष के ज्यादातर समय बर्फ से ढकी रहती है। हालांकि अगर बर्फबारी न हो तो दिसंबर माह तक मंदिर जाते हैैैं। लेकिन नवंबर माह में बर्फबारी व अत्यधिक ठंड होने के कारण मुश्किल हो जाती है।
इसलिए प्रत्येक वर्ष गर्मियों के दिनों में चूड़धार की यात्रा शुरू हो जाती है। यहां दर्शन के लिए देश ही नहीं विदेश से भी श्रद्धालु आते हैं।इस देवस्‍थान को ट्रैकिंग के लिए भी जाना जाता है।
चूड़धार पर्वत तक पहुंचने के दो प्रमुख रास्ते हैं।मुख्य रास्ता नौराधार से होकर जाता है तथा यहां से चूड़धार 14 किलोमीटर है। दूसरा रास्ता सराहन चौपाल से होकर गुजरता है। यहां से चूड़धार 6 किलोमीटर है।
खूबसूरत वादियों से होकर गुजरने वाली यह यात्रा सदियों से चली आ रही है। यदि कभी सिरमौर भ्रमण करने का अवसर प्राप्त हो तो सिरमौर जिले के इस पावन स्थल चूड़धार में भोलेनाथ के दर्शन करने अवश्य जाएं ।
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