देहरादून,
कोरोना काल में हो रही बौरियत को दूर करने की लिए अचानक दिल-दिमाग में एक ख्याल आया की क्यूँ न समय का सदुपयोग किया जाए। इस परिपेक्ष मे शशांक रोहिला और उसके मित्र ने मिलकर एक खाश यात्रा का ड्रीम एजेंडा तैयार किया। इस ड्रीम एजेंडा में उन्होंने चारधाम यात्रा को साइकिल द्वारा पूरा करने का संकल्प लिया। इस विलक्षण चारधाम यात्रा को उन्होंने साइकिल द्वारा 15 दिन में अंजाम दिया। यात्रा की शुरुआत करने से पूर्व दोनों ने उत्तराखंड शासन से यात्रा पास बनवाया ताकि कोरोना काल होने के कारण हमारी यात्रा में किसी भी प्रकार का व्यवधान उत्पन्न न हो। सफर की शुरुआत करने से पूर्व शशांक रोहिला और उसके मित्र पंकज बिष्ट ने यात्रा की शुरुआत देहरादून के गांधी पार्क से ये कहा कि ये हमारा गोल्डन ड्रीम है क्यूंकि उत्तराखंड राज्य में शायद आज तक किसी ने भी साइकिल द्वारा चारधाम यात्रा अभी तक नहीं की। शशांक रोहिला एवं पंकज बिष्ट दोनों ही देहरादून के निवासी है। शशांक रोहिला के पिता राकेश कुमार उत्तराखंड रोडवेज में सहायक महाप्रबंधक पद पर रुद्रपुर डिपो में तैनात है तथा माँ सरकारी स्कूल में अद्यापिका के पद पर तैनात है। पंकज बिष्ट के पिता एवं माता यात्रा पर जाने से पूर्व दोनों ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि इस साइकिल यात्रा को करने के हमारे दो उद्देश्य है । एक तो हम चाहते थे की साइकिल को यातायात के साधन के रूप में प्रयोग करें। क्यूंकि आज कल लोग साइकिल को व्यायाम का माध्यम समझते है, लेकिन हम चाहते है कि साइकिल यातायात के साधन के रूप में विकसित हो, ताकि सेहत और पर्यावरण दोनों ही सुरक्षित रह सके।
चारधाम साइकिल यात्रा से लौटने के उपरान्त इस यात्रा के सन्दर्भ में उन्होंने अपने खट्टे - मीठे अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि चारधाम साइकिल यात्रा हालांकि हनारे लिए चुनौती भरा था, लेकिन हमने इसे एक खेल भावना समझ कर खेल की भाँति ये चुनौती स्वीकार करते हुए इस खेल को खेला और विजयी भी हुए।
इस चार धाम यात्रा की शुरुआत हमने देहरादून (गाँधी पार्क) से करते हुए मसूरी, कप्टीफाल, नैनबाग़, डामटा से होते हुए नौगांव पहुंचे। ये सफर लगभग 110 किलोमीटर था। उस रात नौगांव में ही हमने एक खाली प्लाट में अपना टेंट लगाकर रात्रि भोज कर विश्राम किया। पहले दिन हमें कई परेशानिया हुई जैसे की साइकिल कैरियर पर हमसे बैग ठीक प्रकार से नहीं लग रहा था। चढ़ाई बहुत अधिक थी। साइकिल चलाने में थोड़ा परेशानी हो रही थी। साथ ही हमने कविड- 19 को ध्यान में रखते हुए अपने टेंट, सीलीपिंग बेग, मैट, कपडे आदि सभी सलीके से रखे हुए थे ताकि कही भी आबादी वाले क्षेत्र में न रूककर गाँव से बाहर ही हम रुके। बैग अधिक भारी भी था। कुल मिलकर पहले दिन थोड़ी परेशानी हुई क्यूंकि सफर चुनौती भरा था, धीरे - धीरे बाद सब नार्मल होता चला गया।
दूसरे दिन नौगाँव से फूलचट्टी के लिए संकरे रास्ते से होते हुए जो यमुनोत्री धाम से लगभग ३ किलोमीटर पहले था वहाँ पर रात्रि विश्राम किया।
तीसरे दिन पूलचट्टी से जानकी चट्टी पहुँच कर अपनी साइकिल वहीँ छोड़ पैदल मार्ग से यमुनोत्री मंदिर पहुंचकर, दर्शनोपरांत वापस बड़कोट पहुँच गए।
चौथे दिन उत्तरकाशी पहुंच रात्रि विश्राम किया।
पांचवे दिन उत्तरकाशी से गंगोत्री धाम के लिए यात्रा की शुरुआत करते हुए, शाम तक भैरव घाटी पहुंचकर टैंट लगया जो गंगोत्री से 10 किलोमीटर पहले था।
छठे दिन भैरव घाटी से गंगोत्री धाम मंदिर पहुँच कर दर्शन करने के उपरान्त शाम तक उत्तरकाशी पहुँच कर रात्रि विश्राम किया।
सांतवे दिन उत्तरकाशी से केदारनाथ धाम के लिए चौरंगी खाल, लंबगांव से होते हुए जाखन्याली में विश्राम किया।
आंठवे दिन जखन्याली से फाटा की और प्रस्थान किया जो गौरी कुंड से 20 किलोमीटर पहले था फाटा में रात्रि विश्राम किया।
नोवे दिन फाटा से गौरी कुंड पहुंचकर केदारनाथ धाम के लिए 16 किलोमीटर पैदल यात्रा की। केदारनाथ मंदिर में दर्शनोपरांत वापस आकर गौरी कुंड में रात्रि विश्राम किया।
दसवे दिन गौरी कुंड से ऊखीमठ - चौपता की ओर रूख किया। ऊखीमठ से निकल कर 6 किलोमीटर आगे जाकर टैंट लगाया।
ग्याहरवे दिल गरूड़ गंगा पहुंच कर रात्रि विश्राम किया, जो जोशीमठ से 22 किलोमीटर आगे है।
बारहवें दिन गरूड़ गंगा से बदरीनाथ धाम के लिए रवना हुए मगर जैसे ही हम लम्बागढ़ चैक पोस्ट पहुंचे तो वहां पर तैनात एसडीआरएफ़ (राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल ) ने हमें देरी होने के कारण सुझाव दिया कि आप लोग कल प्रातः यहाँ से बदरीनाथ धाम के लिए प्रस्थान करे न की अब। .
तेरहवे दिन लंबगढ़ से बदरीनाथ धाम 11 बजे तक पहुँच गए। वहां बदरीनाथ मंदिर में दर्शन कर उसी दिन जोशीमठ पहुँच गये।
जोशीमठ के बाद अगले दिन यात्रा करते हुए 2 दिन में देहरादून पहुँच गये। देहरादून पहुँचने पर इनके मित्रो एवं निकट सम्बन्धियों ने फूल मालाओं से उनका अभिनन्दन किया। "यात्रा के अनुभव साझा करते हुए शशांक रोहिला एवं पंकज बिष्ट ने बताया क़ि ये एक अत्यंत साहसिक एवं रोमांचक साइकिल यात्रा थी जो सदैव हमरे लिए अविस्मरणीय रहेगी"