‘राज’ तुम चलना संभलकर !
चाहे कोई राह रोके
या कोई चलते में टोके
सच्चाई के मार्ग पर तुम
चलते जाना बस निरंतर
‘राज’ तुम चलना संभलकर !
आँधी या तूफ़ान आये
या कोई शैतान आये
बिन किए परवाह किसी की
सामना करना तू डटकर
‘राज’ तुम चलना संभलकर !
लोग कुछ ऐसे मिलेंगे
दिग्भ्रमित तुमको करेंगे
छोड़ सबको सच्चाई का
साथ देना हर कदम पर
‘राज’ तुम चलना संभलकर !
मतलबी है ये जमाना
लोभ लालच का दीवाना
देख कर मायावी जलवा
गिर नहीं जाना फिसलकर
‘राज’ तुम चलना संभलकर !
कलम की स्याही ना सूखे
सत्य लिखने से ना चूके
राष्ट्र की सेवा में हर पल
समर्पित रहना मचलकर
‘राज’ तुम चलना संभलकर !!
आज एक नवगीत-
‘राज’ तुम चलना संभलकर !
चाहे कोई राह रोके
या तुम्हें चलते में टोके
सच्चाई के मार्ग पर तुम
चलते जाना बस निरंतर
‘राज’ तुम चलना संभलकर !
आँधी या तूफ़ान आये
या कोई विपदा सताये
बिन किए परवाह किसी की
सामना करना तू डटकर
‘राज’ तुम चलना संभलकर !
लोग कुछ ऐसे मिलेंगे
दिग्भ्रमित तुमको करेंगे
छोड़ सबको सच्चाई का
साथ देना हर कदम पर
‘राज’ तुम चलना संभलकर !
मतलबी है ये जमाना
लोभ लालच का दीवाना
देख कर मायावी जलवा
गिर नहीं जाना फिसलकर
‘राज’ तुम चलना संभलकर !
कलम की स्याही ना सूखे
सत्य लिखने से ना चूके
राष्ट्र की सेवा में हर पल
‘राज’ रहना रोज़ तत्पर
‘राज’ तुम चलना संभलकर !!