भाल तिलक लोहित सजे,मुख देख हुए दंग,
छवि अद्भुत गोविंद की,रुचिर मनोहर अंग।
ग्वाल बाल संगी हुए,नंद - यशोदा लाल,
मथुरा वृंदावन रमे ,रुक्मिणि पति गोपाल।
अर्जुन के थे सारथी , पंचाली के आन,
विष घट में जाकर बसे,मीरा योगिन त्राण।
राधा जन्मों की सखी, बंधु सुदामा बाल ,
सबके चित में तुम बसे , जैसे मुरली ताल।
बहे नीर नित नयन से, हारी तक-तक राह,
यमुना तट राधा कहे , मिलन मुरारी चाह।
कुन्तल बिखरे नाग सा,चुभती रैन विषैल,
जीवन तनिक सँवार दो ,अश्रु भिगोए चैल।
धार अनवरत प्रेम के , हे युग के आदित्य,
जीवन के रसधार तुम , मानव के औचित्य।
हानि थर्म की हो रही, पुनः पधारो श्याम,
कलयुग डँसता व्याल सा,मिले मुक्ति तव नाम।
स्वरचित
मीना चौधरी 'सलोनी '
गुरुग्राम