बदल जाते हैं रंग इंसान के,
बदलते मौसम की तरह।
प्यार तुम्हारा था हमारे लिए,
पावन गंगा जल की तरह।
तुम्हें अपना हमदम माना था हमने,
मन में बसे प्रभु की मूरत की तरह।
मेरी जीवन की परछाई थे तुम,
नैनों में बसे काजल की तरह।
तुम्हें पाने का बहुत प्रयत्न किया हमने,
ना मिले टूटे हुए वृक्ष के पत्तों की तरह।
मुझे भूलना इतना आसान न होगा,
रहूंगी इर्द-गिर्द तुम्हारी परछाई की तरह।
क्यों मुँह मोड़ लिया तुमने हमसे,
एक स्वार्थी दोस्त साथी की तरह।
तुम्हें जो उचित लगा तुमने किया,
छोड़ दिया हमें घायल हृदय की तरह।
प्यार और नफरत तुम्हीं ने सिखाया,
बदलते गिरगिट के रंगों की तरह।
मिले फिर बिछड़े क्यों हुआ ऐसा,
बदलते हुए वक्त की तरह।