आया सावन बरसा पानी,मौसम ने ली अंगड़ाई।
धानी चुनरी ओढ़े धरती, कली कली है मुस्काई।।
ताल तलैया भरे पड़े हैं, जग में खुशियांँ छाई है।
हर्षित होते किसान अपने, शीतल पवन पुरवाई है।।
तप्त धरा भी तरस रही थी, बूंदों से है वो सरसाई
आया सावन बरसा पानी, मौसम ने ली अंगड़ाई।।
मोर पपीहा वन वन बोलें, कोयल भी गीत सुनाए।
गए परदेस मोर पिया जी याद उन्हीं की है आए।।
कटे नहीं है रैना मेरे, नैना भी है भर आई
आया सावन बरसा पानी, मौसम ने ली अंगड़ाई।।
जा रे चंदा बोल पिया को, आंँख मिचोली मत खेले।
पुकार रही है उसकी सजनी, अबकी मिल जाए मेले।।
स्वप्न सुहाने बुनकर मैं तो, खुद से ही हूंँ शरमाई
आया सावन बरसा पानी, मौसम ने ली अंगड़ाई।।