विक्रमी संवत (Vikram Samvat) एक हिंदू कैलेंडर है जो भारतीय सबको विभाजित किया जाता है, विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में। इसका आरंभ चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य नामक एक सम्राट के नाम पर हुआ था, जिनका शासनाकाल ५७ ईसा पूर्व से २० ईस्वी तक था।विक्रम संवत का प्रथम महीना चैत्र होता है, जो चन्द्रमा के चंद्रमा के चंद्रमा के दिन के बाद आता है। यह संवत काठमांडू (नेपाल), पुणे (महाराष्ट्र), उज्जैन (मध्य प्रदेश), और पूरे उत्तर भारत में मान्यता प्राप्त है।विक्रम संवत के वर्ष की गणना चन्द्र ग्रहणों के आधार पर होती है, जो बहुत पूर्व से ही हिंदी क्षेत्र में उपयोग में लाया गया था। इसका उपयोग धार्मिक, सामाजिक, और व्यापारिक कार्यों के लिए किया जाता है। 9 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि आरंभ हो रहे हैं और इसी दिन हिंदू नववर्ष की शुरुआत भी होगी। इस संवत के राजा मंगल और मंत्री शनि देव होंगे। हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष नया विक्रम संवत की शुरुआत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है
हिंदू नववर्ष के अवसर पर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग त्योहार मनाए जाते हैं। यह त्योहार विभिन्न नामों में जाना जाता है, जैसे उगादी, गुढी पाड़वा, नवरात्रि, विषु, वैशाखादि, चैत्र नवरात्रि आदि। ये त्योहार विभिन्न समुदायों और क्षेत्रों में विभिन्न रूपों में मनाए जाते हैं, लेकिन उन सभी का मूल उद्देश्य नववर्ष का स्वागत करना है।
हिंदू नववर्ष के पीछे वैज्ञानिक कारण:
हिंदू नववर्ष के पीछे वैज्ञानिक कारणों का अध्ययन किया गया है, और यह कारण धर्मिक, सांस्कृतिक, और वैज्ञानिक परंपराओं से जुड़े हैं। निम्नलिखित कुछ वैज्ञानिक कारण हैं:
1. सौर एवं चंद्र गतियों का प्रभाव: हिंदू नववर्ष का समय सूर्य और चंद्र गतियों के आधार पर निर्धारित किया जाता है। इसके लिए ज्योतिषीय गणनाओं का उपयोग किया जाता है, जो सूर्य और चंद्रमा के गतियों के संदर्भ में होते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, इन गतियों का असर भूमि पर होने वाले अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव को दर्शाता है, जो नए वर्ष के आरंभ के समय महत्वपूर्ण माना जाता है।
2. मौसमी परिवर्तन: हिंदू नववर्ष अक्सर ऋतु के परिवर्तन के साथ मिलता है, विशेष रूप से वसंत ऋतु के साथ। इसके साथ ही, यह मौसमी परिवर्तन भी जीवन में नई उमंग और नए आरंभ के संकेत के रूप में देखा जाता है।
3. आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपरा: हिंदू नववर्ष का मनाना धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का एक हिस्सा है। इस उत्सव के दौरान, लोग धार्मिक आराधना, पूजा-अर्चना, और संगीत के साथ नए वर्ष का स्वागत करते हैं, जिससे उन्हें आनंद, शांति, और संबल मिलता है।
इन कारणों के संयोजन से हिंदू नववर्ष का मनाया जाना एक समृद्ध और संगीतमय उत्सव बन जाता है, जो वैज्ञानिक और सांस्कृतिक प्रतिष्ठा का प्रतीक होता है।