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सिंगापुर शैक्षिक भ्रमण और प्रशिक्षण वर्ग से लौट कर हेमराज ठाकुर ने साझा किए अपने अनुभव :-

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ब्यूरो 7018631199 | April 11, 2024 02:22 PM

मंडी,


चार अप्रैल 2024 से नौ अप्रैल 2024 तक समग्र शिक्षा विभाग हिमाचल प्रदेश द्वारा अंतराष्ट्रीय शैक्षिक भ्रमण एवम प्रशिक्षण हेतु भेजा गया दूसरा ग्रुप 9 अप्रैल रात की फ्लाइट में सिंगापुर से वापिस आ गया है।इस ग्रुप के सभी 102 सदस्य 10 तारीख रात तक अपने - अपने घर पहुंच चुके हैं ।इस ग्रुप में हिमाचल प्रदेश राजकीय भाषाई अध्यापक संघ के राज्य अध्यक्ष हेमराज ठाकुर भी शामिल रहे। हेमराज ठाकुर ने बताया कि यह हिमाचल प्रदेश समग्र शिक्षा निदेशालय द्वारा लिया गया एक सराहनीय निर्णय था,जिसके तहत कनिष्ठ बुनियादी अध्यापक , सी & वी अध्यापक,प्रशिक्षित स्नातक विविध संकायों के अध्यापक, प्रवक्ता स्कूल न्यू और प्रवक्ता,केंद्र मुख्य शिक्षक,मुख्य अध्यापक,तथा प्रधानाचार्य आदि सभी पदों के शिक्षक दो ग्रुपों में सिंगापुर की शिक्षा प्रणाली का अध्ययन करने भेजे गए थे। इन दोनो ग्रुपों में महिला और पुरुष दोनों वर्गों के शिक्षक - शिक्षिकाएं अंतर्राष्ट्रीय शैक्षिक भ्रमण और प्रशिक्षण हेतु सिंगापुर गए थे। उन्होंने बताया कि जहां एक ओर इस पांच दिवसीय शैक्षिक भ्रमण और प्रशिक्षण वर्ग के दौरान हिमाचल के अध्यापक - अध्यापिकाओं ने गणराज्य सिंगापुर की प्रिंसिपलज एकेडमी के मास्टर ट्रेनरों से अंतराष्ट्रीय शैक्षिक योग्यता संवर्धन के गुर सीखे ; वहीं दूसरी ओर इस भ्रमण के दौरान सिंगापुर के विभिन्न पर्यटक स्थलों का और शहरी वयवस्था का अवलोकन कर के भी अध्यापक - अध्यापिकाओं ने बहुत कुछ सीखा। ठाकुर ने बताया कि देख कर सीखने के सिद्धान्त को इस प्रशिक्षण और भ्रमण का आधार बनाया गया था ; जिसके तहत इस पूरे कार्यक्रम को मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया गया था। प्रथम के दो दिन सभी अध्यापक - अध्यापिकाओं को सिंगापुर के विभिन्न पर्यटक स्थलों - मैरिलियन सिटी, मरीना बे स्टैंड, गार्डन बाय द बे तथा यूनिवर्सल स्टूडियो आदि का भ्रमण करवाया गया। इन पर्यटन स्थलों के भ्रमण के दौरान हिमाचल के शिक्षकों ने सिंगापुर गणराज्य की तकनीकी ववस्था,स्वच्छता व्यवस्था,प्रशासनिक प्रबन्धन व्यवस्था,नागरिक प्रबन्धन व्यवस्था,पर्यटन प्रबन्धन व्यवस्था तथा जल मार्ग यातायात व उड्डयन यातायात व्यवस्था के साथ - साथ विद्युत आपूर्ति व्यवस्था और जल प्रबन्धन व्यवस्था आदि का बारीकी से अध्ययन किया। पर्यटन स्थलों और शहरों के भ्रमण तथा होटल प्रबन्धन से शिक्षकों ने स्वच्छता ,भोजन तथा पानी को व्यर्थ न करने का सबक लिया । ठाकुर ने बताया कि स्वच्छता के मामले में तो सिंगापुर सच में ही एक रोल मॉडल देश है,जिसका अनुसरण प्राकृतिक और स्वास्थ्य सुरक्षा की दृष्टि से सभी को आंख मूंद कर करना चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि शहरों में भी नागरिक प्रबन्धन और यातायात प्रबन्धन इतना व्यवस्थित है कि कहीं भी कोई भीड़ भाड़ नजर नहीं आती और न ही तो कोई यातायात जाम लगता है । अब यह कानून व्यवस्था का प्रभाव हो या यहां की सरकार का। पर सचमुच ये बातें सिंगापुर से सीखने योग्य है।स्वच्छता तो इतनी पुख्ता है कि कहीं पर भी कूड़ा कचरा या धूल मिट्टी नजर नहीं आती है। जनता भी इतनी अनुशासित है कि एक पल को भी कोई नियम नहीं तोड़ता। ठाकुर ने बताया कि ये सभी बातें यदि एक शिक्षक अपने छात्रों को हिमाचल में स्कूली जीवन के दौरान सिखाने में कामयाब हो जाता है तो
हिमाचल जैसा प्राकृतिक पर्यावरण से लबरेज राज्य भी शैक्षिक धरातल पर अवश्य की उन्नत होगा।
अगले दो दिनों अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित "प्रिंसिपल अकादमी सिंगापुर "के प्रबुद्ध प्रशिक्षकों द्वारा हिमाचल के शिक्षकों को शिक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने वाले आधारभूत मानकों और तकनीकों का प्रशिक्षण दिया गया। इस प्रशिक्षण में जहां पहले दिन शैक्षिक तकनीकों, बाल मनोविज्ञान, क्लास रूम प्रबन्धन, सह संज्ञानात्मक और संज्ञानात्मक पहलुओं पर ब्लूमज टेक्सनामी के मानकों पर चर्चा परिचर्चा हुई, वहीं दूसरे दिन एक्टिविटी बेसड़ क्लास रूम लर्निंग के विविध आयामों और मानकों पर विस्तृत चर्चा परिचारा हुई।इस प्रशिक्षण वर्ग में प्रिंसिपल अकादमी सिंगापुर की प्रधानाचार्या ली यंग और उनके मास्टर ट्रेनर्स को हिमाचल प्रदेश सरकार के सहायक निदेशक बाबूराम शर्मा ने हिमाचली टोपी और शॉल भेंट कर सम्मानित किया और प्रशिक्षण के अन्त में प्रिंसिपल अकादमी सिंगापुर की प्रधानाचार्या और सहायक निदेशक बाबूराम शर्मा जी द्वारा हिमाचल से गई सभी शिक्षकों को प्रशिक्षण वर्ग का प्रमाण पत्र वितरित किया गया।
इसी कड़ी में इस यात्रा के पांचवें दिन शिक्षकों को सिंगापुर के स्कूलों का अवलोकन करने के लिए दो भागों में बांटा गया और एक समूह प्राथमिक विद्यालय निरीक्षक के लिए भेजा गया तथा दूसरा उच्च या सेकेंड्री स्कूल शिक्षा व्यवस्था का निरीक्षण करने के लिए भेजा गया। हेमराज ठाकुर ने बताया कि इस कड़ी में उनकी टीम को सेकेंड्री स्कूल - "गैंन ऐन्ग सेन्ग " के निरीक्षण हेतु भेजा गया था।वहां भी प्रधानाचार्य और दो उप प्रधानाचार्यों को हिमाचल के एस पी डी कार्यालय की टीम द्वारा हिमाचली रीत से सम्मानित किया गया। सभी अध्यापकों ने स्कूल प्रबंधन , परिसर,व्यवस्थापन ,पाठ्यक्रम, कक्षा - कक्ष व्यवस्थापन तथा मूल्यांकन व्यवस्था आदि के मानकों का सामूहिक रूप से पाठशाला के प्रधानाचार्य और उप प्रधानाचार्य के साथ अवलोकन किया।

हेमराज ने बताया कि इस कड़ी में प्रश्नोत्तर विधि से हिमाचल के अध्यापकों ने सिंगापुर शिक्षा प्रणाली के बारे में पाठशाला के प्रधानाचार्य और उप प्रधानाचार्य से बहुत कुछ सीखा और समझा।ठाकुर ने बताया कि वहां प्री प्राइमरी, प्राइमरी, और सेकेंड्री स्कूल शिक्षा प्रणाली है। प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था 6वीं कक्षा तक की है। फिर कक्षा 7वीं से उच्च शिक्षा व्यवस्था शुरू हो जाती है। उसमें वोकेशनल कोर्स की एक विशेष कक्षा लर्निनी बाय डूइंग के सिद्धांत पर स्कूलों में लगाई जाती है जिसके लिए स्कूलों में लैब बनाई गई होती है। ठीक इसी तरह से होम साइंस का विषय भी स्कूलों में अवश्यंभावी होता है। उसके लिए भी लैब बनी होती है। बच्चों को सामान उपलब्ध करवाया जाता है और विभिन्न खाद्य सामग्री बनाने के लिए शिक्षकों के उचित मार्गदर्शन में इस लैब में प्रयोगात्मक शिक्षा दी जाती है। इन बातों का उद्देश्य यह है कि बच्चा जब कल समाज में जाएगा तो वह अच्छे से एडजस्ट होगा और साथ में बच्चे की अधिगम रुचि को।जांचना भी एक उद्देश्य रहता है। क्योंकि सिंगापुर शिक्षा प्रणाली में कक्षा 9 वीं से स्ट्रीम सिस्टम शुरू हो जाता है तथा 10 वीं तक की शिक्षा यहां अनिवार्य है। यह भी बताया गया कि यहां की स्थाई निवासी जनता को सिंगापुर सरकार के ही स्कूलों में अपने बच्चों को दाखिल करना बड़ा जरूरी है। ठाकुर ने बताया कि यहां पर पदोन्नति वरिष्ठता के आधार पर नहीं बल्कि अध्यापक की परफॉर्मेंस के आधार पर होती है। सभी स्तर के स्कूलों में मुखिया प्रिंसिपल ही होता है।

प्रिंसिपलों के तबादले प्राथमिक से स्कैंडरी और स्कैंड्री से प्राथमिक स्कूलों को भी होते हैं।तबादले साल में मात्र दो बार ही होते हैं।एक मिड सेशन में और दूसरा साल के अन्त में। उन्होंने बताया कि यदि कोई शिक्षक मौखिक व लिखित चेतावनी के बाद भी अपनी कार्य प्रणाली में सुधार नहीं लाता है तो उसे उसकी सेवाओं से हटा भी दिया जाता है। स्कूल प्रधानाचार्य को स्कूल प्रबंधन,अनुशासन और शिक्षकों के संदर्भ में निर्णय लेने के बहुत से अधिकार है। अध्यापकों के लिए ड्रेस कोड अनिवार्य है। लोकल इन्वॉल्वमेंट स्कूल प्रबंधन में है ही नहीं। हां प्रधानाचार्य से अभिभावक बात कर सकते हैं। प्रधानाचार्य की अनुमति के बिना कोई स्कूल कैंपस में प्रवेश नहीं कर सकता है। स्कूलों में स्क्योर्टी गार्ड तैनात किए गए हैं।स्कूलों में कैंटीन व्यवस्था,पुस्तकालय व्यवस्था तथा टीचर ट्रेनिंग कक्ष और इन डोर तथा ऑउट डोर दोनों प्रकार की क्रीड़ा व्यवस्था उपलब्ध है।
अधिकतर शिक्षा गतिविधि आधारित पद्धतियों से कक्षाओं में दी जाती है। विज्ञान की पढ़ाई और तकनीकी शिक्षा पर यहां विशेष ध्यान दिया जाता है। रोबोटिक तकनीक की ओर अग्रसर यहां की व्यवस्था भविष्य की तकनीकी को ध्यान में रख कर कार्य कर रही है।भाषा शिक्षण में पाठ्य पुस्तकों से ज्यादा महत्व दैनिक समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के अध्ययन को कक्षा में दिया जाता है,जिससे छात्रों को देश की गतिविधियों का भी बोध हो जाता है तथा भाषा की मूल संरचना - सुनना,समझना,लिखना और पढ़ना तथा कल्पना करना आदि का क्रियान्वयन हो जाता है। बच्चे भी पाठ्य पुस्तकों की बोरियत से बाहर निकल कर स्वयं को अधिक स्वतन्त्र और रुचिकर महसूस करते हैं।मूल्यांकन व्यवस्था में यहां बच्चों को परीक्षा के दबाव से मुक्त करने के लिए मात्र अवलोकन प्रणाली का प्रयोग किया जाता है। लिखित परीक्षा मात्र चार सत्रों में होती है जो प्रथम त्रैमासिक, द्वितीय अर्ध वार्षिक, तृतीय प्री वार्षिक और चौथी वार्षिक होती है। वार्षिक परीक्षाओं से ही बच्चों का परीक्षा परिणाम घोषित किया जाता है।हेमराज ने बताया कि यहां की शिक्षा प्रणाली में प्रधानाचार्य और उप प्रधानाचार्य के पद गैर शैक्षिक पद होते हैं।इन्हे स्कूल प्रबंधन,स्कूल कल्याण सम्बंधी व्यवस्थाओं,शिक्षक प्रशिक्षण, शैक्षिक और गैर शैक्षिक गतिविधियों के व्यवस्थापन तथा कक्षा कक्ष प्रबन्ध को मूल्यवान और सुदृढ़ बनाने आदि के कार्यों में ही ध्यान केंद्रित करना होता है। उन्होंने यह भी बताया कि यहां के स्कूलों में उप प्रधानाचार्यों के भी दो पद होते हैं।
ठाकुर ने बताया कि कुल मिलाकर उन्होने इस प्रशिक्षण यात्रा से यही सीखा कि शिक्षा व्यवस्था की तकनीक, विधियां, अवधारणाएं, संज्ञानात्मक और सह संज्ञानात्मक पहलू तो दुनियां में लगभग वही एक जैसे हैं पर उन्हें धरातल पर क्रियान्वित करने के लिए अपनाए गए तौर तरीकों में विविधता है। उन्होंने बताया कि ब्लूम्स टैक्सो नामी यदि भारत में भी शिक्षण अधिगम की आधार मानी जाती है तो वही सिंगापुर में भी मानी जाती है। परन्तु उसके क्रियान्वयन के घटकों में हर जगह अन्तर है। यह सीखने वाली बात है। इनमें से कुछ तो सरकार की ओर से नीतिगत फैसलों के घटक है और कुछ निदेशालय स्तर के प्रशासनिक सक्रियता के घटक है। परन्तु कुछ घटक अध्यापकों के अपने स्तर और स्कूली स्तर के हैं,जिन्हे चाहे तो अध्यापक अपने - अपने स्कूलों में सक्रियता से लागू कर सकते हैं। इस अवसर पर हेमराज ठाकुर ने हिमाचल प्रदेश सरकार और सिंगापुर सरकार का भी अपने संघ की ओर से आभार प्रकट किया और दोनों शिक्षा विभागों का भी धन्यवाद किया। ठाकुर ने सभी शिक्षक संगठनों से भी एक खुला आवाह्न किया है कि इन दोनों ग्रुपों में हिमाचल के सभी वर्गों के शिक्षक सिंगापुर गए थे। तो ऐसे में सभी यूनियनें अपनी - अपनी यूनियनों के उन - उन शिक्षकों से संपर्क साधे और अनुभव साझा करे तथा फिर सभी यूनियनें अपने वर्ग के उन साथियों के साथ अपने राज्य के पदाधिकारियों को लेकर माननीय शिक्षा सचिव महोदय से सभी वर्गों के शिक्षकों के लिए एक संयुक्त बैठक हिमाचल की शिक्षा प्रणाली को सुदृढ़ करने के लिए प्रदान करने का आग्रह करें। हेमराज ठाकुर ने बताया कि हिमाचल जैसे राज्य में शिक्षक यूनियनों का शिक्षा प्रणाली पर बहुत बड़ा प्रभाव रहता है। इसलिए हिमाचल प्रदेश सरकार और शिक्षा विभाग को हिमाचल की शिक्षा प्रणाली के ढांचे को मजबूत करने के लिए सभी यूनियनों के पदाधिकारियों से एक समन्वय बैठक आयोजित करनी चाहिए।ठाकुर ने बताया कि बहुत सी बातें हैं जो शिक्षा के ढांचे को मजबूत बनाने के लिए इस शैक्षिक भ्रमण से शिक्षकों ने सीखी और समझी है। परन्तु उन्हें धरातल पर लाने के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार, शिक्षा विभाग तथा शिक्षक यूनियनों का आपसी तालमेल और समन्वय बहुत जरूरी है। ठाकुर ने इस संदर्भ में सभी यूनियन मुखियाओं से भी और सरकार और विभाग से भी अपील की है कि पुरानी परिपाटियों और अहम तथा वहम की अवधारणाओं को अलविदा कहने का वक्त अब आ गया है।अतः अब समय गुणवाता शिक्षा, मूल्य शिक्षा और स्वच्छता शिक्षा जैसे मुद्दों पर संयुक्त बैठक कर के महत्पूर्ण निर्णय लेने का आ गया है,जिसे हमारी भविष्य की पीढ़ियां भी याद रखेगी।मुद्दे यूनिफार्म कोड के हो या फिर कक्षा संचालन के हो। वे चाहे अध्यापक मानसिक परिवर्तन के हो या फिर शासनिक व प्रशासनिक बदलाव के हो। उन्हे एक साथ मिलकर सुलझाना ही हिमाचल प्रदेश की शिक्षा प्रणाली की सुदृढ़ता का मूल आधार है।इसलिए इस संयुक्त शैक्षिक सुधार बैठक पर सभी को संजीदगी से विचार करना चाहिए। वरना शिक्षा के क्षेत्र में किए जा रहे हर प्रयोग का कोई खास परिणाम धरातल पर नजर ही नहीं आएगा। क्योंकि अमूमन देखा यही गया है कि सरकार और विभाग कोई फैसला लेते हैं और कोई न कोई यूनियन उस फैसले पर विरोध जताती है। फिर मुद्दे को वापिस लिया जाता है।इसलिए वैचारिक धरातल पर एकरूपता लाने के लिए सर्व संघ समन्वय कमेटी सरकार और शिक्षा विभाग को स्थापित करनी चाहिए, जिसमें सिंगापुर से प्रशिक्षण ले कर लौटे अध्यापकों के साथ साथ हर पंजीकृत अध्यापक संगठन के राज्य स्तरीय पांच - सात पदाधिकारी शामिल किए जाए और लोकतांत्रिक तरीके से हिमाचल की शिक्षा प्रणाली के सुधार के लिए निर्णय लिया जाए। उसके बाद किसी का।विरोध या गतिरोध मायने भी नहीं रखेगा।
हेमराज ठाकुर ने बताया कि इस दूसरे ग्रुप में सहायक निदेशक शिक्षा विभाग बाबूराम  की अध्यक्षता में 102 शिक्षकों ने सिंगापुर शिक्षक भ्रमण का लाभ उठाया।
इस ग्रुप का मार्गदर्शन प्रणव भण्डारी द्वारा किया गया।

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