ग्लोबल हेल्थ मैगजीन लैंसेट ने अपनी चौंकाने वाली रिपोर्ट में बताया है कि, करीब 50 फीसदी भारतीय इतने आलसी हो चुके हैं कि वो रोजाना के लिए जरूरी निम्नतम शारीरिक श्रम भी नहीं करते। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक हेल्दी रहने के लिए कम से कम हफ्ते में 150 मिनट की फिजिकल एक्टिविटी जरूरी है, लेकिन आधे भारतीय इस पैमाने पर खरे नहीं उतरते।
पिछले कुछ दिनों से हमारे कुछ न्यूज़ चैनल में यह समाचार बड़े जोश और से हैं कि भारतीय लोग आलसी है और इस प्रकरण को इस तरह से व्यक्त किया जा रहा है और यह यकीन दिलाया जा रहा है कि भारतीय सचमुच में आलसी है। मेरी व्यक्तिगत विचार में यह कहना कुछ अनुचित है क्योंकि इतनी बड़ी जनसंख्या के बारे में एक सामान्य राय बनाना बहुत ही अशोभनीय है।हालांकि कुछ संस्कृति की वजह से हमारे काम करने का तरीका और खान पान की व्यवस्थाएं कुछ अलग है। भारत एक कृषि प्रधान भारत एक कृषि प्रधान देश है और साथ ही अधिकांशत जनसंख्या अपनी रोजी-रोटी के लिए कड़ी मेहनत करती है तो इसमें आलस्य का स्वभाव सवाल ही नहीं होता।
यह कहना कि "भारतीय आलसी हैं" एक व्यापक और नकारात्मक सामान्यीकरण है जो कि किसी भी बड़े और विविध देश के लोगों के बारे में नहीं किया जाना चाहिए। हर समाज में विभिन्न प्रकार के लोग होते हैं - कुछ मेहनती, कुछ कम मेहनती।
कुछ लोग भारतीयों के आलस्य का कारण सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कारकों को मान सकते हैं:
- सांस्कृतिक कारक: भारतीय समाज में अक्सर परिवार और सामुदायिक जीवन को महत्व दिया जाता है, जिससे व्यक्तिगत समय और आराम को भी महत्व दिया जाता है।
- आर्थिक कारक: उच्च जनसंख्या घनत्व, बेरोजगारी, और सीमित संसाधनों के कारण कई बार लोग हतोत्साहित महसूस कर सकते हैं।
- शैक्षिक और संरचनात्मक समस्याएं: शिक्षा प्रणाली और सरकारी सेवाओं में कई बार सुधार की आवश्यकता होती है, जो कि लोगों की कार्यक्षमता और उत्पादकता को प्रभावित कर सकते हैं।
- जलवायु: भारतीय उपमहाद्वीप में उच्च तापमान और उमस के कारण लोग अक्सर धीमी गति से काम करना पसंद करते हैं।
हालांकि, यह भी महत्वपूर्ण है कि यह देखा जाए कि भारत में बहुत से लोग अत्यंत मेहनती और प्रतिबद्ध होते हैं, जो देश के विकास और प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। भारत में विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त करने वाले लोग हैं, जैसे कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा, व्यवसाय और कला में।
हर समाज में कुछ लोग कम मेहनती हो सकते हैं, लेकिन इसे पूरी जनसंख्या के लिए लागू करना अनुचित और गलत होगा।