Tuesday, January 28, 2025
Follow us on
ब्रेकिंग न्यूज़
NJHPS ने 7000 मिलियन यूनिट्स दूसरी सबसे तीव्रता से उत्पादन कर कीर्तिमान किया स्थापितनाथपा झाकड़ी हाइड्रो पावर स्टेशन में 76वाँ गणतंत्र दिवस धूमधाम से मनाया गयानाथपा झाकड़ी हाइड्रो पावर स्टेशन में 36वें सड़क सुरक्षा सप्ताह का आयोजनतीन साल बाद  हरिपुर गाँव पहुँचा  सिंचाई योजना का पानी  ग्रामीणों ने जताई खुशी, जल शक्ति विभाग का जताया आभार। 15वां राष्ट्रीय मतदाता दिवस आयोजित राज्यपाल ने मतदाता जागरूकता के महत्व पर बल दियाइंदिरा गांधी ने अपनी गद्दी को बचाने के लिए उच्च न्यायालय के आदेशों की अवहेलना की : बिंदलमुख्यमंत्री ने बैजनाथ के लिए 70.26 करोड़ रुपये की परियोजनाओं के शिलान्यास व उद्घाटन किएमुख्यमंत्री ने 300 से अधिक ऑनलाइन सेवाएं प्रदान करने वाला हिम परिवार पोर्टल लॉन्च किया
-
कहानी

जिंदा रहने के लिए चाहतों को जिंदा रखना है;पुष्पा पाण्डेय

-
ब्यूरो हिमालयन अपडेट 7018631199 | February 19, 2022 08:55 PM
पुष्पा पाण्डेय

 

 

चाहत के धागे

इच्छाएँ कभी समाप्त नहीं होती। एक पूरी होती है तो दूसरी जन्म ले लेती है। जन्म से लेकर मृत्यु तक ये चाहते बनी रहती हैं। इंसान ही नहीं जीव मात्र इन चाहतों के धागों से बंधा हुआ है। धरती पर आते ही उसकी अपनी जरूरतें शुरू हो जाती है। उसे भूख लगती है, प्यास लगती है, मौसम का प्रभाव भी उस पर पड़ता है। स्वाभाविक है जिन्दा रहने के लिए चाहतों को जिन्दा रखना है। रोटी, कपड़ा और मकान, इन मौलिक चाहतों का तो जन्मसिद्ध अधिकार है। यदि चाहत न हो जिन्दगी थम जायेगी। ये चाहत ही तो है कि हमें धरती से अंतरिक्ष तक पहुँचा सकती है। नयी-नयी इच्छाओं का जन्म लेना गलत नहीं है। यह तो जिन्दगी को खुशगवार बना देती है। जरूरत है इन चाहतों को साकारात्मक होना।

अखबार में नाम एक आतंकी का भी आता है और एक राष्ट के सिपाही का भी। चाहत जीवन में गति प्रदान करती है, लेकिन यही चाहत जब सुरसा के मुख के समान दुगुना होता जाए और लालच, अहंकार और सोहरत की जामा पहन ले तो स्वतः पतन की कगार पर आ खड़ी हो जाती है। जब खुबसूरत चाहतों को जीवन के धागे में पिरोयेंगें तो यह एक सुमिरनी माला तैयार हो सकती है। चाहतों का दायरा व्यष्टि न होकर जब वह समष्टि बन जाता है तो मानव जन्म ही सफल हो जाता है।


हाँ,ये सही है कि चाहतों का अंत नहीं है और पूरी जिन्दगी उसे पूरी करने में ही बीत जाती है, तो क्यों न हम सिर्फ इतनी ही चाहत रखें जिससे
"मैं भी भूखा न रहूँ, साधु भूखे न जाए।"

कबीरदास जी ने बरसों पहले इस मूल मंत्र को कह गए। लेकिन आज इस चाहत की डोर हनुमान जी की पूँछ की तरह बढ़ती जा रही है। हनुमान जी की पूँछ कल्याणकारी चाहत लेकर बढ़ती रहती है। यदि मानव भी अपनी चाहत के धागे को मजबूत बनाना चाहता है तो उसे भी दायरा बढ़ाना होगा। चाहत के धागे इतने मजबूत हो कि सुमिरनी (पूजा की माला) के साथ-साथ गले का श्रृंगार बन जाए।

 

-
-
Have something to say? Post your comment
-
और कहानी खबरें
-
-
Total Visitor : 1,70,71,289
Copyright © 2017, Himalayan Update, All rights reserved. Terms & Conditions Privacy Policy