यूं पी के चंदेल नगर में जन्मी दुर्गाबाई ।
कालिंजर हो गया धन्य घर-घर बाजी शहनाई।।
दुर्गा अष्टमी को जन्म लिया दुर्गावती रख उठा नाम।
पिता कीर्ति सिंह धन्य हो गए धन्य हो गया ग्राम।
पिता परम योद्धा थे गजनी बार-बार था हारा।
दलपत शाह से गई विवाही हर्षित गढ़ मंडल सारा ।।
रानी को एक पुत्र हुआ, वीर नारायण कहलाया ।
ईश्वर को शायद रानी का सुख भी तनिक न भाया।।
तीन वर्ष का पुत्र रहा, वैधव्य भाग्य में आया।।
अकबर को गढ़ मंडल की स्वतंत्रता रास न आई ।
बाज बहादुर को भेजा ,हो गई शुरू लड़ाई।।
पुत्र पीठ पर बांध युद्ध में निकल पड़ी जब रानी ।
काट रही थी दुश्मन सेना ,
जैसे बहता पानी।।
भारी मुगलों की सेना थी रानी पार न पाई ।
घेर लिए दुश्मन के सैनिक मन में यही विचारी ।
मार कटारी मर गई रानी अपनी प्रतिष्ठा बचाई।।
जीवित रानी हाथ न आई गढ़ मंडल वह पाया ।।
नारी से वह लड़ा, सभी ने तब धिक्कार लगाया ।।
रानी की जय जनता बोली हो गया गर्वित सीना।
कहता है इतिहास इसी को
भाई शान से जीना।।
धन्य धन्य रानी दुर्गावती नमन करे जग सारा।
भारत की तुम बीर हो बेटी अर्पित नमन हमारा।।