आज कुछ लिखना आरंभ किया। जो महसूस करती हूँ उस बोध को रूह की गहराइयों तक
पहुँचाना चाहती हूँ। इसीलिए सोचा सबसे पहला लेख उसी लेखनी के बारे में
लिखूँ जो बड़ी आसानी से हजारों लोगों के दिलों को खोल कर रख देती है।
जब चलती है तू किसी काग़ज़ पर तो दो जिंदगियों को एक कर देती है या एक
हुई दो जिंदगियों के लिए अलग अलग रास्ते बना देती है।
कहने को तो लेखनी एक उपकरण है परंतु जब लिखती है किसी की भी तक़दीर सवार
देती है या अच्छे-अच्छों का भविष्य बिगाड़ देती है।
समाज सिर्फ़ किसी जाति या वर्ग में ही विभाजित नहीं बल्कि तेरे सामान्य
से नए नए आधुनिक आकर्षक रूप भी किसी की वर्तमान स्थिति अथवा प्रतिष्ठा का
प्रमाण देते है और इस आधार पर समाज में उस व्यक्ति को वर्गीकृत करते हैं।
तुझमें तो किसान के हल जितनी ताक़त है तू चल पड़ी तो लोगों का घर रोटी से
भर जाए वरना भरे भराए घर भी ख़ाली कर जाए।
तेरा लिखना तो न्यायालय के उस न्यायाधीश के उस निर्णय की तरह है जिसके
पक्ष में होगा उसकी ज़िंदगी संवार देगी अपितु किसी हंसते को रुला देगी।
तेरे माध्यम से समाज ने तेरा ही बड़ा दुरुपयोग किया और सही को ग़लत व
ग़लत को सही का स्थान दे दिया।
बहुत सोचा बहुत विचारा कि तुझसे क्या लिखूँ और लिखूँ तेरा कौन सा मुकद्दर,
मस्त है, मलंग है पर है तू बड़ी कलंदर।
बहुत छोटी, बड़ी नाजुक सी पर गहराई ना माप सका तेरी कोई,
यूँ लगता है समेट रखा है तूने खुद में एक समंदर।।
प्राची खुराना
गुरुग्राम, हरियाणा