ताक में रहते हैं कब मिलेगा मौका
झपट्टा मारने को रहते हर दम बेचैन
नज़र गड़ाए रहते हैं अपने शिकार पर
हवस में अंधे हो जाते हैं उनके नैन
नाकाम जब हो जाते अपने नापाक इरादों में
फिर तो मन में उनकी लग जाती है आग
बदला लेने को हमेशा रहते हैं बेताब
फैंक देते है उस मायूस के चेहरे पर तेजाब
मां बहन बेटी उनको क्यों रहती नहीं याद
नशे में किसी की ज़िंदगी कैसे कर देते हैं बर्बाद
कुंठित मन के होते हैं यह सारे
दिमाग में इनके भरा रहता है अवसाद
आजकल शर्म और हया दोनों हैं बेच खाई
जन्म दिया जिसने करते हैं उससे बेहयाई
बदनाम कर दिया उस मां का भी नाम
नौ माह कोख में रहकर जिससे ज़िन्दगी थी पाई