इस अजनबी शहर में कोई
रास्ता पूछे तो बताता नहीं
भटक गया यदि कोई राह से
तो सही राह कोई दिखाता नहीं
मकान बनते जा रहे हैं भर गया है शहर
आजकल घर कोई बनाता नहीं
महज एक औपचारिकता बन गए हैं रिश्ते भी
दिल से अब कोई इन्हें भी निभाता नहीं
सुख दुख में कभी सब साथ चलते थे
बुरे दिनों में अब कोई नज़र मिलाता नहीं
खाना खिलाना तो बड़ी दूर की बात है
प्यासे को भी आजकल कोई पानी पिलाता नहीं
सबके घरों में छत हैं बहुत खुले खुले
अब दाना चिड़ियों को कोई खिलाता नहीं
कुत्तों को रखते हैं घर में बड़े शौक से
बुजुर्गों को कोई मुंह लगाता नहीं
ताक में रहते हैं लोग ऊपर उठते को गिराने में
हाथ नहीं बढ़ाता कोई गिरते को उठाने में
उजड़ते देखा है हमने छोटी बस्तियों को
मुद्दतें लग जाती है इक शहर बसाने में