अमिट प्रेम की यादें तुझमें,
-रखना चाहे, सफल ना हुए..
जितना ही हम पास थे चाहे,
उतना ही तुम दूर हो गए !!
मैंने सोचा, 'प्यार को मेरे
-याद करो, ...जब दूरी होगी!
मैंने सोचा, मन की तृप्ति
मेरी याद से पूरी होगी!
और कौन हो सकता है जो,
-मुझ इतना तुमको चाहेगा;
मेरे - सिवा फिर और कौन
प्रिय-अंतस में अवगाहेगा?'
पर अपने ही अन्तरतम से
तुम कितने मगरूर हो गए...
जितना ही हम पास थे चाहे
उतना ही तुम दूर हो गए !!
'जो छवि होगी इक - दूजे की
इक - दूजे की ऑखों में;
जो धड़कन महसूस किए हम
इक दूजे की सॉसों में;
वैसी अनुभूति, छुवन वैसी
और कहॉ हम -तुम पाएंगे ...
सत्य - प्रेम पा लिया है तुमसे
और न रब से कुछ चाहेंगे!'
यही सोच सब साथ तुम्हारा
हम जीवन में 'स्वप्न जी गए'...
जितना ही हम पास थे चाहे
उतना ही तुम दूर हो गए !!
'बहुत काल औ बहुत युगों से
तरसा करते प्राण हमारे;
हर जीवन में इक-दूजे के
होते हैं तन - जान हमारे;
हम विछुड़ें हैं ऐसे - जैसे
परम तत्व से जीव विछुडता...
फिर मिल जाते, जग में आकर
जैसे नद सागर से मिलता!'
यही 'आस्था' मन -जीवन का
माया से भरपूर हो गए...
जितना ही हम पास थे चाहे,
उतना ही तुम दूर हो गए!!
आह! प्रेम की मधुर कल्पना,
क्या सचमुच मिथ्या होती है!
कुछ विशेष ही मन होता है,
कुछ विशेष आत्मा रोती है!
हाय रे! ईश्वर, क्या वे अब
इस ब्रह्माण्ड में कभी मिलेंगे...?
और मिलन क्या ऐसा होगा,
'पूर्व-जन्म', पहचान भी लेंगे!
यदि नहीं तो सत्व पे तेरे,
-आज तो प्रश्न जरूर हो गए...
जितना ही हम पास थे चाहे
उतना ही तुम दूर हो गए!!