सब सिखा सब कुछ बिका
सच कभी नहीं जाना न दिखा।
धर्म में बंटवारा,जाति पर लड़ाई,
स्त्री और पुरूष का फर्क ,
इन्सानियत का खून है भाई।
न जोड़ा हमने मानुष को प्रेम से,
तोड़ने की नई -नई तरकीबें बनाई।
मैं हूं महान वो छोटा है,
मैं उच्च वो खोटा है।
अरे कौन सी गठरी है जो ढो रहा,
क्यों मानुष क्यों रोता है।
नफ़रत से नफ़रत को काटेगा,
कुछ गद्दारों की खातिर देश भी बांटेगा।
गुनेहगार एक्का दुक्का होता है,
कैसे इन्हें भिड़ से छांटेगा।
बीमारी एक नक्श भर की है,
हाथ पूरा काटेगा।
भारत माता के सहस्रों हाथ,
कौन सा धर्म कौन सी जाति छांटेगा।
कैसे तय होगा भारत किसका है,
बांट कर देख लिया पहले भी,
कब कितना इसे फिर बांटेगा।
सबने लहूं बहाया सरहदों पर,
अन्दर किसका सर काटेगा।
हर धर्म, जाति के लाल की याद
इंडिया गेट ,
जा वहां कैसे शहादत को बांटेगा,
किसकी कम किसकी ज्यादा आंकेगा।
एक बार फिर से बांट दें भारत के सिने को,
दुश्मन जो पर्दे से देख रहा,
सामने से झांकेगा।
अमर ज्योति को बुझा देगा क्या,
सिने पर गोलियां खाई उन्हें भूला देगा क्या।
न गोली ने भेद किया न दुश्मन ने,
साथ में मरने वाला भी भाई था भूला देगा क्या।
कफ़न में लिपटा देगा शहीद को भी अब,
तिरंगे की रीत भी मिटा देगा क्या।