कष्ट जो दिखता नहीं सभी को,
किन्तु बड़ा तड़पता हैं।
कुछ बह जाता है अश्रु संग,
कुछ ह्रदय में घर कर जाता हैं।
ना दे पाए मन को चैन ये,
सुकून कहीं खो जाता हैं।
रह जाते भीड़ में भी अकेले ,
पीड़ यही कहलाता हैं।
कभी चीत्कार करने को मन चाहे,
कभी मौन ही रहना भाता हैं।
बाँटना चाहता पीड़ को अपनी,
फिर भी निशब्द हो जाता हैं।
पीड़ सताए ह्रदय को बहुत ही
जब कोई अपना बिछड़ जाता हैं
होते टुकड़े ह्रदय के कई ,
केवल पीड़ ही रह जाता है।