महर्षि दयानंद सरस्वती जयंतीमहर्षि दयानंद सरस्वती जयंती आज, मंगलवार 5 मार्च, 2024 को मनाई जाती है, । महर्षि दयानंद सरस्वती आर्य समाज के संस्थापक थे, एक भारतीय दार्शनिक और सामाजिक नेता हैं जिनकी जन्मतिथि इस दिन मनाई जाती है।स्वामी दयानंद सरस्वती भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख समाज सुधारक और धर्मनिरपेक्ष विचारक थे। उन्होंने 19वीं सदी के मध्य में हिंदू धर्म के विभिन्न पहलुओं पर आलोचना की और समाज को समझाया कि संस्कृति और धर्म को सुधारने के लिए आवश्यक है।स्वामी दयानंद सरस्वती भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख समाज सुधारक और धर्मनिरपेक्ष विचारक थे। उन्होंने 19वीं सदी के मध्य में हिंदू धर्म के विभिन्न पहलुओं पर आलोचना की और समाज को समझाया कि संस्कृति और धर्म को सुधारने के लिए आवश्यक है। स्वामी दयानंद का सर्वांगीण योगदान हिंदू समाज को जागरूक करने में रहा। उन्होंने वेदों को प्रमुख धर्मग्रंथ माना और उनकी पुनरावृत्ति और पुनर्जीवन की आवश्यकता को प्रमुखता दी। उनका मुख्य धार्मिक आन्दोलन आर्य समाज का स्थापना करना था, जिसका मुख्य उद्देश्य धर्म के शुद्धिकरण और हिंदू समाज के सुधार को प्रोत्साहित करना था।
स्वामी दयानंद के विचारों में विचारधारा का प्रमुख तत्त्व था "वेदों का पुनर्जीवन"। उन्होंने समाज में स्त्रियों के अधिकारों को बढ़ावा दिया, जातिवाद के खिलाफ लड़ा, और धर्मनिरपेक्ष शिक्षा को प्रमुखता दी। उनके विचारों ने हिंदू समाज में एक नया चेतना का जन्म किया और उन्होंने समाज में धार्मिक उत्थान के लिए भी कई सामाजिक कार्यक्रमों की स्थापना की।
उनका योगदान हिंदू समाज को स्वतंत्रता और समाजिक न्याय की ओर उनमें जागरूक किया। उनके विचारों ने भारतीय समाज को आत्म-सम्मान और समृद्धि की ओर ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
स्वामी दयानंद द्वारा लिखित "सत्यार्थ प्रकाश" हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इस ग्रंथ में वे अपने विचारों को प्रस्तुत करते हैं और उनके धार्मिक दृष्टिकोण को सामाजिक और राजनीतिक परिपेक्ष्य में विश्वसनीयता और यथार्थता के साथ विश्वसनीय बनाते हैं।
"सत्यार्थ प्रकाश" के विचारों की मुख्य बातें धर्म, समाज, राष्ट्र और विज्ञान से जुड़ी हैं। इस ग्रंथ में स्वामी दयानंद ने वेदों के महत्व को उजागर किया, धर्म की महत्वता पर बल दिया और धर्म के माध्यम से समाज को कैसे सुधारा जा सकता है, इसके बारे में चर्चा की है।
सत्यार्थ प्रकाश में स्वामी दयानंद ने वेदों के महत्व को बड़े पैमाने पर प्रमुखता दी। उन्होंने वेदों को धर्मग्रंथ के रूप में स्वीकार किया और उनकी महत्वता को समझाया। इस ग्रंथ में उन्होंने अनेक विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए, जैसे धर्म, सत्य, समाज, शिक्षा, स्त्री उत्थान, आर्य समाज, आदि।सत्यार्थ प्रकाश में स्वामी दयानंद ने भारतीय समाज में जातिवाद, प्रतिष्ठा परम्परा, और विभाजन के खिलाफ भी अपनी आलोचना की। इस ग्रंथ के माध्यम से उन्होंने भारतीय समाज को एकता और समरसता की ओर प्रेरित किया और उन्होंने समाज को धर्मनिरपेक्षता की दिशा में प्रेरित किया।
सत्यार्थ प्रकाश के माध्यम से स्वामी दयानंद ने भारतीय समाज को धार्मिक और सामाजिक उत्थान के लिए प्रेरित किया और आर्य समाज की स्थापना में भी इसका महत्वपूर्ण योगदान था।
"सत्यार्थ प्रकाश" में स्वामी दयानंद ने विविध विषयों पर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं, जैसे वेदों का स्वरूप, वेदों में ज्ञान का प्राप्त करने के लिए अध्ययन की आवश्यकता, धर्म का महत्व, जीवन का उद्देश्य, समाज के सुधार के उपाय, वैज्ञानिक तथ्यों के प्रति धर्म की भूमिका आदि।
"सत्यार्थ प्रकाश" स्वामी दयानंद के विचारों का महत्वपूर्ण स्रोत है और इसका प्रकाशन 1875 में हुआ था। यह ग्रंथ हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान है।