गुरु पूर्णिमा एक महत्वपूर्ण हिंदू त्यौहार है, जो गुरु (शिक्षक) को समर्पित होता है। यह त्यौहार आषाढ़ माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो आमतौर पर जुलाई के महीने में आता है।
हिंदू धर्म में गुरु का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण और सम्माननीय है। गुरु शब्द का अर्थ है "अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला"। गुरु वह व्यक्ति है जो अपने शिष्यों को ज्ञान, मार्गदर्शन, और आध्यात्मिक समर्थन प्रदान करता है। हिंदू धर्म में गुरु की महत्ता और उनके विभिन्न रूपों का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है Iगुरु वह है जो शिष्य को आत्मज्ञान, धर्म, और सत्य का मार्ग दिखाता है। गुरु के बिना जीवन में सच्चा ज्ञान प्राप्त करना असंभव माना जाता है।हिंदू धर्म में गुरु-शिष्य परंपरा का विशेष महत्व है। यह परंपरा वेदों और उपनिषदों के समय से चली आ रही है। शिष्य अपने गुरु से ज्ञान प्राप्त करता है और उनके मार्गदर्शन में जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझता है।
वेदों और शास्त्रों में गुरु की महत्ता को सर्वोपरि माना गया है। वेदों में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, और महेश का रूप कहा गया है - "गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरा।"
गुरु अपने शिष्यों को आत्मा और परमात्मा के संबंध में ज्ञान प्रदान करते हैं और उन्हें मोक्ष के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। गुरु के बिना आध्यात्मिक उन्नति संभव नहीं मानी जाती। हिंदू धर्म में गुरु की सेवा और भक्ति का विशेष महत्व है। शिष्य अपने गुरु की सेवा करके उनके आशीर्वाद और कृपा प्राप्त करते हैं। गुरु की सेवा करना ही सर्वोच्च धर्म माना गया है।
गुरु पूर्णिमा का महत्व और इसके पीछे की कथा इस प्रकार है:
- गुरु की महिमा: हिंदू धर्म में गुरु का स्थान बहुत ऊंचा माना जाता है। गुरु को भगवान से भी ऊंचा स्थान दिया जाता है क्योंकि गुरु ही व्यक्ति को ज्ञान की राह दिखाते हैं।
- व्यास पूर्णिमा: गुरु पूर्णिमा का एक और नाम व्यास पूर्णिमा भी है, क्योंकि इस दिन महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। वेद व्यास को महाभारत के लेखक और वेदों का संकलन करने वाले माना जाता है।
- ध्यान और साधना: इस दिन शिष्य अपने गुरु के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं और गुरु की पूजा करते हैं। साधना और ध्यान का विशेष महत्व होता है, क्योंकि यह आत्मिक उन्नति का समय होता है।
- कथाएँ और प्रवचन: इस दिन कई स्थानों पर विशेष कथाएँ और प्रवचन आयोजित किए जाते हैं, जिसमें गुरु और शिष्य के महत्व को बताया जाता है।
- साधना का समय: गुरु पूर्णिमा के बाद चातुर्मास (चार महीने) की अवधि शुरू होती है, जो साधना और भक्ति का समय माना जाता है। इस दौरान साधु-संत एक स्थान पर रहकर साधना और प्रवचन करते हैं।
गुरु पूर्णिमा एक ऐसा अवसर है, जब शिष्य अपने गुरु के प्रति कृतज्ञता और सम्मान व्यक्त करते हैं और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को संवारने का संकल्प लेते हैं।