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उपमंडल के निरमंड में सांस्कृतिक मंच निरमंड द्वारा पहाड़ी बोली पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में आउटर सराज के साहित्यकार,लेखक,कवि,शिक्षक,सहित राजकीय महाविद्यालय निरमंड के छात्र छात्राएं शामिल हुए। कार्यक्रम के मुख्यातिथि सांस्कृतिक मंच निरमंड के अध्यक्ष दीपक शर्मा ने कहा की भारत मे हर प्रदेश की अपनी बोली और भाषा है। परंतु हिमाचल प्रदेश में हर ज़िला क्षेत्र में पहाड़ी बोली भाषा मौजूद है,जैसे कांगड़ा में कांगड़ी,मंडी में मंडयाली, भाषा का अधिक प्रचलन है । अन्य राज्यों की तरह हिमाचल में भी पहाड़ी बोली को दर्जा मिलना चाहिए जिसके लिए हिमाचल के साहित्यकार,विद्वान कार्य कर रहे है। आउटर सराज की पहाड़ी बोली में चिड़ियों के प्राचीन नामों,आपस मे पहाड़ी बोली के वाक्यों, मुहावरों, श्लोको,रामायण,महाभारत,श्रीकृष्ण लीला,पर सभी ने अपने अपने विचार प्रस्तुत किए। हिंदी की प्रोफैसर राज भगति नेगी ने कहा कि हिमाचल प्रदेश की पहाड़ी भाषा बोली हिंदी शब्दो से बनी है। कांगड़ा से कुल्लू तक पहाड़ी भाषा सरल है, मगर किन्नौर व लाहौल स्पीति की भाषा अलग है। प्रोफ़ेसर संजीव ने कहा कि हिमाचल की सभी बोलियां भाषा मधुर है, संगीता कुमारी ने पहाड़ी बोली में गाँव में हर रोज बोली जाने बाली परिवार से बातचीत करने बारे सुंदर व्यख्यान प्रस्तुत किया गया। हिमसंस्कृति संस्था के अध्यक्ष एस आर शर्मा ने आउटर सिराज पहाड़ी बोली पर मेलों ,पहाड़ी गीतों की परम्परा पर विचार प्रस्तुत किए। शिवराज ने कहा कि आउटर सिराज की पहाड़ी भाषा कुल्लू की पहचान है आउटर सिराज के हर गाँव मे लोग अपनी।पहाड़ी बोली में ही अधिकतर बात करते है गाँव के बजुर्ग हमेशा ही पहाड़ी बोलना पसन्द करते है पहाड़ी भाषा को अधिमान मिलना जरूरी है। कार्यक्रम में डिग्री कॉलेज निरमंड के छात्र धर्मेंद्र सिंह,और छात्रा संगीता कुमारी ने पहाड़ी बोली में सबसे बेहतरीन प्रस्तुती दी। इस अवसर पर।सांस्कृतिक मंच निरमंड के अध्यक्ष दीपक शर्मा,शिवराज शर्मा,प्रोफ़ेसर संजीव,प्रोफ़ेसर होशियार चंद,प्रोफ़ेसर रितिका पॉल, प्रो0 राजभगति,धन प्रकाश।शर्मा,रोशनलाल जोशी,राजिंदर शर्मा,हिमांशु,सहित सांस्कृतिक मंच निरमंड के साहित्यकार,विद्वान,सहित अन्य सदस्य।शामिल हुए।