बेटा जबसे बहू लेकर आया है जगनी की दुनिया ही बदल गई है.सांवला सलोना हृष्ट-पुष्ट मजबूत कद-काठी का बेटा और चांदनी सी रंगत लिये तीखे नाक-नक्श ,घुटने तक लंबे ,घने केश वाली अति सुंदरी बहुरिया..
बेटा परदेश गया कमाने वहीं से व्याह लाया ..बेटे संग अनजान लड़की देख जगनी चिहुंकी ,"यह कौन ?"
"तुम्हारी बहू.."और दोनो मां के पांव पर झुक गये..बहू के बर्फ जैसे ठंढे हाथ..वह दो कदम पीछे हट गई..
बहू की गहरी नजर..वे सम्मोहित उसके पीछे-पीछे...
जब भी बेटे से बहू के मायके ,जात-बिरादरी के बारे में पूछती ..बेटे का छोटा-सा जबाव ,"मुझे एक दिन रात्रि में ड्युटी से लौटते समय पुलिया पर रोती-बिलखती मिली थी..मैं साथ लाया..पसंद आई ..विवाह कर लिया..इसका संसार में कोई नहीं..."
जगनी चुप..बहु की वही तिरछी शीतल निगाहें अपनी ओर खींचती हुई... न कुछ कहना न कुछ पूछना....
बहु दिन के उजाले में कम ही बाहर निकलती ..हां रात होते .. सोलहों श्रृंगार कर वो सारे कार्य कर डालती जिसे दस जन भी न कर पावें...
...रंग-बिरंगे बेमौसम फल ,फूल ...तरकारी कीमती गहने -कपडे़...माल -असबाव ,"कहां से कौन लाया..."जगनी अचम्भित...प्रत्युत्तर में बहु की वही ठंढी-तिरछी निगाहें...जो उसके रीढ़ की हड्डी सनसनाने के लिये काफी...
जगनी प्रश्न पूछना भूल उसी में खो जाती ...उसे कुछ न सूझता .....बेटे-बहू की दुनिया में वह भी मस्त..
: घर से बाहर निकलती तब उसे अहसास होता ...कुछ न कुछ गड़बड़ जरुर है ...आखिर बेटा कमाने क्यों नहीं जाता..ये सारे खर्चे साज-सामान कहां से आते हैं..कौन लाता है..
अनेक विचार दिल में घुमड़ते ...किंतु घर में घुसते ही सब उड़न छू ..बस बेटे-बहु के हां में हां...
आज दुसरे गांव से जगनी की बहन बहु देखने आई..," दीदी..दीदी .."करती घर में प्रविष्ट हुई ..बहु पर नजर पड़ते ही जाने क्या हुआ उल्टे पांव भाग खडी़ हुई..
बहु ने हाथ बढा़कर रोकना चाहा किंतु वह उसकी पहुंच से बाहर निकल चुकी थी.
जगनी अनमनी सी कनेर फूल का डाल पकडे़ खडी़ थी..."दीदी..दीदी.."बहन गले से जा लगी..
"कैसी हो दीदी ...मैं बहु देखने आई हूं..."
"चलो देख लो ..बडी़ सुंदर है मेरी बहु..."जगनी इतरा उठी.
"दीदी पहले मेरी बात ध्यान से सुनो..."और बहन ने जो बताया उसे सुन जगनी बेहोश होते-होते बची..
" ऐसा कैसे कह सकती हो..."
"मैंने अपनी आंखों से देखा है..."
"तुम फंस गई दीदी और तुम्हारा बेटा भी... "
"कुछ तो है.. पर ऐसा..."जगनी सिर पकड़ कर बैठ गई..
उस रात जगनी घर नहीं लौटी...बेटे को होश कहां और बहु अपनी दुनिया में व्यस्त..
दो दिनों के पश्चात एक गुणी को लेकर दोनो वापस लौटीं..गुणी ने अभिमन्त्रित जल ,चावल ,पीले सरसों के दाने ... घर के चारों ओर छिड़क दिया..फिर मंत्रोच्चार करता हुआ जैसे ही घर के भीतर प्रवेश किया...बहुरिया चीखने-चिल्लाने लगी .. सुंदर चेहरा विकृत वीभत्स हो गया..कमनीय काया कंकाल में परिवर्तित हो गया..वह नकियाने लगी..."मैं मां बेटे को नहीं छोडू़ंगी...बडी़ मुश्किल से इन्हें वश में किया है..मैं नहीं जाऊंगी..."
इस सबसे बेखबर गुणी जोर-जोर से मंत्रोच्चार करता रहा ..धूप लोबान अग्नि प्रज्वलित कर उसमें समिधा डालता रहा..
पास-पडो़स जमा हो गये.."न कभी ऐसा सुना न देखा.."
"भूतनी वह भी हमारे पडो़स में.."जितनी मुंह उतनी बातें..
गुणी के सामने प्रेतात्मा की एक न चली और वह धुएं के रुप में परिवर्तित हो आकाश में विलीन हो गई..
बेटे की मूर्छा खुली,"पानी ,पानी..:" कमजोर पीला मुख.."मैं घर कैसे आया..बीमार हूं क्या.."
"कुछ नही ऐसे ही ..."जगनी ने अपनी बहन और गुणी का शुक्रिया अदा किया ..जिन्होंने समय रहते इतनी बडी़ मुसीबत से मां-बेटे को बचा लिया..बेटे को कुछ भी याद नहींऔर जगनी को बहु का ठंढा स्पर्श,बेधती निगाहें ,गली के कुत्ते का बहु पर नजर पड़ते ही किंकिंयाकर भाग जाना ..पडो़सन की बिल्ली का घर के बाहर से विचित्र गुर्राना.. ताम-झाम याद आते ही विचलित कर देता..
उस मायावी के हटते ही घर से वह सारा कीमती सामान स्वतः गायब हो गया जिसे उसने अपनी माया से रचा था..
"तुम्हें कैसे मालूम चला कि बहुरिया प्रेतनी है.."जगनी पूछ बैठी.
"दीदी तुम दोनों उसके वश में थे..मैं जैसे ही तुम्हारे घर में घुसी देखा एक विकृत वीभत्स चेहरे ,उल्टे पांव वाली स्त्री पूरे घर में हवा समान डोल रही है ..चिराईन दुर्गंध पूरे घर में फैला हुआ था..मुझे देखते ही वह मेरी ओर झपटी लेकिन ईश्वर की महिमा मैं भाग निकली..और तुम्हें सचेत किया..अगर उस दिन तुम घर से बाहर नहीं मिलती तो मैं कुछ भी नहीं कर पाती..."
जगनी अपने बेटे के सिर पर हाथ रखे उपर वाले को धन्यवाद दिया..वह ऐसे सो रहा था जैसे वर्षों के बाद नींद आई हो.
उफ्फ वो निगाहें...
सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना-डाॅ उर्मिला सिन्हा©®