जब मातृत्व जाग उठता है तो स्त्री उसके सामने छोटी पड़ जाती है निलिमा क्या- क्या सोच कर आई थी। परंतु ममता के बहाव में बदले का आवेग आवेग न जाने कहां बह गया । निलिमा ने एक नजर रमा पर डाली ! कितनी एक तरफ खड़ी थी..... नीलिमा के निर्णय को जानने के लिए आतुर...... नीरीह चेहरे पर भय चिंता ,आशंका के मिले जुले भाव तैर रहे थे...
नीलिमा ने ससुराल से बैरन लिफाफे की तरह आई बिटिया अदिति की पीठ थपथपाई ,सिर पर हाथ फेरते हुए अपने आंचल से उसके आंसू पोछने का उपक्रम करने लगी ,अदिति के मुख से निकला "मां "का उद्गार उसे मातृत्व से विमुख न कर सका। जिन परिस्थितियों से उसने स्वयं चुप्पी साधे जीवन गुजारी थी। आज अदिति को नहीं गुजारने देगी, वह जरूर आवाज उठाएगी।
आज की रात बहुत भारी गुजरने वाली थी ।नीलिमा अपने उसी छोड़े हुए कमरे में अपने बिस्तर पर अपलक देखते हुए सुबह के अपने फैसले का ताना-बाना बुन रही थी।
राघव के भी आंखों में नींद कहां थी बैठक के सोफे पर बैठकर अपने अंतर्मन के युद्ध को शांत करने की कोशिश कर रहा था। नीलिमा को उस रात की याद आ गई जब राघव ने उससे राय मांगी थी, राय क्या उसे एक निर्णय ही तो करना था। 6 वर्षों बाद भी जब ईश्वर ने बेटी अदिति की गोद सूनी कर दी थी तो आज राघव से अपने अंतहीन पीड़ा का बदला चुकाने का इससे बेहतर और कोई अवसर ना था....
राघव बहुत कठिनाई से नीलीमा से कह पाए थे कि '..नीलिमा अदिति को समधि जी घर छोड़कर गए हैं, कह रहे हैं कि ...'पांच वर्ष तक तो हमने उम्मीद लगा कर रखी, पर भगवान ने अदिति की गोद नहीं भरी। वंशवेल को आगे बढ़ाने के लिए घर में कुलदीपक की आवश्यकता है अदिति के सहमत से ही हम शशांक को दूसरी शादी के लिए राजी कर पाए हैं। अदिति भी बड़ी बहू बनकर रहेगी।"
नीलिमा को भी स्पष्ट याद आ गया, विवाह के प्रथम वर्ष निकल जाने पर गोद ना भरी तो सास उसके विरुद्ध आवाज उठाने लगी, धीरे-धीरे वर्ष दर वर्ष गुजरते गए ।गोद ना भरी तो अपने ऊपर होने वाले कानाफूसी और बांझपन का लगा लांछन उसे दिल तक भेद देता था तो उसने राघव से कही..-.. राघव ने उससे कहा ..!"क्यों ध्यान देती हो बेकार की बातों पर" इसी एक वाक्य के सहारे नीलिमा आश्वस्त होकर रह जाती। भाग्य का लिखा , एक समय उसे भी यही फैसला लेना था। गरीब घर की नीलिमा , वृद्ध रुग्ण पिता ,भाई भौजाई के चार बच्चों वाली गृहस्थी में रहकर भार नहीं बनना चाहती थी ।राघव को दूसरी शादी के लिए मोहिनी को सौत बनाकर
घर ले आई...
अंततः फिर परिस्थिति से समझौता कर लिया और बड़ी बहू का पद और राघव के नजर में इज्जत और प्यार के सहारे उस छोटी के बच्चों की मां बन गई। जल्द ही कुलदीपक की भी प्राप्ति हो गई ।अदिति राघव मोहिनी के प्रथम पुत्री थी। नीलिमा समझ रही थी कि राघव उसे हमेशा मान सम्मान देते हैं ताकि उसका अस्तित्व बना रहे परंतु उसे लगा कि वह लगातार छोटी से हारती जा रह थी।" बीघो बंजर जमीन की तुलना में बीघा भर उपजाऊ भूमि मूल्यवान बनती जा रही थी" छोटी का घर
जितना भरता ,नीलिमा उतना ही रिक्त होती गई। चिड़चिड़ी हो गई अब उसे अपने मान सम्मान सब दिखावा लगने लगे, उसके तीखे तेवर का शिकार अक्सर सौत, बच्चे बनते थे। राघव ने एक फैसला लिया नीलिमा की गृहस्थी शहर में कर दी। और आज अपने छोटी सौत के घर बेटी अदिति का फैसला सुनाने और सुलह कराने आना पड़ा।
अदिति का फैसला कल सुनाना था नीलिमा सुबह उठी थी सब उसे चुपचाप देख रहे थे उसने समघि शशांक के पिता को बुलाया और फैसला सुनाया..... " हम शशांक की दूसरी शादी नहीं होने देंगे समधी जी....... किसी भी कीमत पर नहीं रहा कुलदीपक का प्रश्न तो दूसरे विकल्प भी हैं चिकित्सा विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि कोई ना कोई रास्ता निकल जाएगा नहीं तो कोई बच्चा गोद ले लेंगे।
आज राघव की करनी ने उसके मुंह पर ताला डाल दिया था। मोहिनी दौड़कर नीलिमा के चरणों में गिर पड़ी...!" दीदी मुझे माफ कर दो आपकी पीड़ा का कारण मैं बनी रही"
नीलिमा सोचने लगी .." कौन कहता है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन है...? वह तो परिस्थिति वश विवश हो जाती है, जिस दिन स्त्री भाग्य के विरुद्ध आवाज उठाने का मनोबल जुटा लेगी उस दिन कहां रहेगी एक दूसरे की दुश्मनी........!
(स्वरचित) मौलिक.