मानव जीवन में रह कर,जो भी मानव को सतावै।
उसको ऐसी सजा मिले प्रभु,कभी भूल नहिं पावै।।
शायद भूल गया है इंसा,ईश्वर सब कुछ देख रहा।
असली दंड वही देता है,अच्छा बुरा जो देख रहा।।
पैसा व कुर्सी की ताकत से, हो बैठा जो अंधा है।
कितनी घिनौनी सोच उसकी, काम कैसा गंदा है।।
भोग रही यह दुनिया कैसे,उसे देख ज्ञान न आए।
अपने रुतबे के दम्भ में वो, दुःख देकर सुख पाए।।
कैसे आत्मा ये करे गंवारा, उसको नहीं धिक्कारे।
पीड़ित हुए जो भी उससे,दिल से श्रापें धिक्कारे।।
आज नहीं तो कल मिले,करनी का फल निश्चित।
यही सृष्टि का नियम रहा,यह व्यवस्था सुनिश्चित।।
इंसानियत,संवेदना विहीन,कैसे कहलाते इंसान।
होता जो मानवता विहीन,राक्षस वो,नहीं इंसान।।
जन्मा जो धरती पर,जाएगा छोड़ दुनिया रंगीन।
ओढ़ श्वेत कफन ही जाएगा,होगा नहीं ये रंगीन।।
गया सिकंदर भी कंधे पे,कंधे पे अशोक महान।
राजा,रंक भी जाएं कंधे पे, जाने सकल जहान।।
जीवित रहते फिरभी कितना,सबको अभिमान।
ये भी सोचो तनिक जरा, सबका है स्वाभिमान।।
सारा अहं टूट जाएगा,जब मारे हथौड़ा भगवान।
समय रहते अहंकार छोड़ दे,सुधर जा ऐ इंसान।।
सब सहता,संतोष किए जो,मीठा फल मिलता।
अन्यायी,दोषी को निश्चित है, उसे फल मिलता।।
देर है,अंधेर नहीं है,ईश्वर की अदालत में थोड़ा।
प्रभु ने बड़े-बड़े बलवानों का,सदा घमंड तोड़ा।।
सबका टूटा है,तेरा भी टूटेगा,एक दिन पक्का।
समझ न पाएगा मिलेगा, होगा हक्का-बक्का।।
इतना अहंकार न कर, सुधर जा मूरख इंसान।
हर करनी का फल देताहै,बस केवल भगवान।।