शिमला,
राजकीय भाषाई अध्यापक संघ हिमाचल प्रदेश के प्रदेशाध्यक्ष हेमराज ठाकुर और उनकी टीम ने बताया कि सोसियोल मीडिया में एक खबर बड़े तेजी से वायरल हो रही है कि हिमाचल प्रदेश सरकार शिक्षक संगठनों के अनुरोध पर स्कूलों में होने वाली छुट्टियों के शेड्यूल में परिवर्तन करने जा रही है। हेमराज ठाकुर का कहना है कि हमारा संघ इस बात के लिए मना नहीं करता कि छुट्टियों में बदलाव न किया जाए। परन्तु उन्होंने कहा कि दुख तो इस बात का है कि यह बदलाव ऐन मौके पर करना कहां तक जायज है? ठाकुर ने बताया कि हमने इस संदर्भ में शिक्षकों, बच्चों और अभिभावकों से भी बात की तो सभी का यही कहना है कि ये जो छुट्टियां पूर्व में जुलाई - अगस्त में निर्धारित की गई थी तो इन्हे बीच में बदलने की क्या आवश्यकता थी? इसमें सरकार ने यह बदलने का निर्णय लिया हो चाहे विभाग ने प्रपोजल भेजा हो पर कहीं न कहीं यह पूर्वजों द्वारा लिए गए संतुलित निर्णय को ठुकरा कर अपनी बात थोपने जैसा नहीं था क्या? ठाकुर ने कहा कि यह बड़ी घोर विडम्बना है कि सरकारें तो सरकारें आज सभी शिक्षक संगठन भी छात्रों के हितों को दरकिनार कर के अपने - अपने पॉलिटिकल एजेंडा को सेट करने पर तुले हैं । आज हर शिक्षक संगठन का नेता निजी स्वार्थ सिद्ध करने के चक्कर में और श्रेय लेने की होड़ में सरकार और विभाग को गुमराह करने पर तुला है जिसमें बेचारा गरीब और नन्हा सा छात्र पिसा जा रहा है। उसे ये सभी बदलाव चुपके से हर बार झेलने पड़ते हैं। वह बेचारा विरोध भी तो नहीं कर सकता है। ठाकुर ने बताया कि उन नन्हे मुन्ने छात्रों की पीड़ा को समझना ही एक सच्चे शिक्षक का नैतिक दायित्व है और उनकी समस्याओं को अपने संगठन के नेता तक पहुंचना उनका कर्तव्य । संगठन के नेता का भी यह दायित्व बनता है कि वे छात्र हित में सरकारों और विभाग के सामने अपनी बात निजी स्वार्थ को छोड़ कर सर्वजन हिताय की सार्वभौमिक भावना के साथ रखें। उन्होंने बताया कि संगठन के नेता को अपनी वाहवाही करने के लिए मुद्दा नहीं भुनाना चाहिए बल्कि शिक्षा, शिक्षार्थी और शिक्षक की सार्वभौमिक समस्यायों को आधार मान कर मुद्दा उठाना चाहिए। उन्होंने इस सन्दर्भ में सरकार से भी मांग की है कि रिवियु बैठक में किसी एक शिक्षक संगठन को ही तवज्जों न दें। प्रदेश में लगभग 45 के करीब शिक्षक संगठन काम कर रहे हैं,उन सभी को भी बैठक में बुलाया जाए और फिर कोई ठोस निर्णय लिया जाए। ठाकुर ने बताया कि इतना ही नहीं इस सन्दर्भ में विभाग और सरकार को सभी जिलों के अभिभावकों और एस एम सी को भी पूछना चाहिए। क्योंकि सफर तो उनके ही बच्चे होते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि मौसम हर बार अपनी करवट बदलता रहता है, तो फिर तो हर बार ही छुट्टियों के शेड्यूल में बदलाव करना पड़ेगा। उन्होंने यह भी बताया कि मौसम के लिहाज से तो आज 12 जून को हिमाचल के निचले क्षेत्रों में लू का सर्वाधिक कहर बताया गया है और तीन दिनों तक यलो अलर्ट भी बताया है । फिर तो वहां पर आजकल छुट्टियां होनी चाहिए। यह प्रस्ताव भी उन शिक्षक संगठनों को सरकार को देना चाहिए। ठाकुर ने बताया जो सभी मुद्दों को ध्यान में रखकर पूर्व में छुट्टियों का शेड्यूल बनाया गया है,उसे इस बार वैसा ही रहने दिया जाए । इसमें गर्मी वाले जिलों को भी राहत मिलेगी और बरसात वाली समस्या से भी निपटा जा सकता है। बाकी तो कुदरत पर निर्भर है। ठाकुर ने यह भी बताया कि विभाग और सरकार को चाहिए कि आगामी सत्र से शुरू सत्र में ही सभी अध्यापक संगठनों के साथ बैठक कर के पूरी साल का एक शिक्षा विभाग सम्बंधी हर मुद्दे का सर्वसहमति से निर्णय लिया जाए । जिससे किसी जिले के छात्र को परेशान न होना पड़े। हेमराज ठाकुर ने शिक्षक संगठनों को नसीहत देते हुए कहा कि इस तरह के बेढंग मुद्दों से बेहतर है कि वे गुणवता शिक्षा,स्कूल अनुशासन में शिक्षक को सशक्त बनाने सम्बंधी मुद्दों को, शिक्षकों के नियमितिकरण ,वेतन विसंगतियों, अन्तर जिला स्थानांतरण और अन्य वित्तीय लाभ संबंधी मुद्दों को प्रमुखता से उठाएं,जिसके लिए संगठन ने उन्हें चुना होता है न कि ऐसी बेतुक बातें उठाएं।
ठाकुर ने सरकार और विभाग द्वारा लिए गए निर्णयों पर भी चिन्ता व्यक्त करते हुए बताया कि सरकार और विभाग द्वारा हर बार शिक्षा के क्षेत्र में एक नया निर्णय लिया जाता है , जिससे छात्रों को बहुत परेशानी से गुजरना पड़ता है ।एक सरकार संस्कृत को लागू करती है तो दूसरी सरकार बंद कर देती है और उसके स्थान पर अंग्रेज़ी माध्यम को शुरू कर देती है ।उन्होंने बताया कि हम सरकार के हर फैसले का स्वागत करते हैं परंतु इस तरह से हर बार और हर सरकार में फैसले को बदलते रहना शिक्षा क्षेत्र में परेशानी का सबब बन बैठा है । कम से कम 5 साल के लिए तो एक निर्णय को रहने दिया जाना चाहिए । वरना यह हर बार का बदलाव वाला नियम बार -बार शिक्षा के क्षेत्र में किया जाने वाला एक्सपेरिमेंट गरीब औरत सामान्य छात्रों के साथ निरंतर होने वाला बेहूदा मजाक है । इस तरह से सरकारी स्कूलों के छात्र न ही तो हिंदी के रह पाएंगे और न ही तो अंग्रेजी के हो पाएंगे और न ही तो संस्कृत को ही समझ पाएंगे । उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए यह भी स्पष्ट किया कि यह भाषा कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में तो छेड़छाड़ है ही है इसके साथ-साथ भाषा को छोड़कर अन्य विषयों के मूल तथ्यात्मकता ज्ञान को ग्रहण करने में भी छात्रों के साथ एक बहुत बड़ी समस्या पैदा करने वाली व्यवस्था तैयार की जा रही है ।उन्होंने सभी शिक्षाविदों को भी इस संदर्भ में अपनी राय देने के लिए निवेदन किया है , ताकि भविष्य में सरकार और शिक्षा विभाग इस तरह से बार-बार शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव न करें । कम से कम एक पीढ़ी को तो उसका पूरा लाभ मिल सके । ठाकुर ने बताया की भाषा किसी भी विषय को समझने के लिए एक नींव का पत्थर होती है ।बच्चा जिस भाषा में अच्छे से समझ और सीख सकता है ,बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उसी में ही दी जानी चाहिए । राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी इसका जिक्र किया गया है परंतु फिर भी हिमाचल सरकार और शिक्षा विभाग ने हिमाचल के सरकारी स्कूलों के प्राथमिक स्तर पर अंग्रेजी माध्यम को अपनाने की जो पहल आरंभ की है वह इस दृष्टि से अमनोवैज्ञानिक जान पड़ती है । क्योंकि गरीब एवं सामान्य वर्ग के बच्चों को हिमाचल जैसे हिंदी भाषी राज्य में जितनी अच्छे से समझ हिंदी में आती है उतनी अच्छे से अंग्रेजी में समझ नहीं बना पाएंगे । इससे उनकी अंग्रेजी भाषा को छोड़कर अन्य विषयों को समझने की मूल भावना पर ठेस पहुंचेगी और वह शायद उन विषयों की मूल अवधारणा को ठीक-ठीक नहीं समझ पाएंगे ।ठाकुर ने बताया कि अंग्रेजी को एक विषय के रूप में पढ़ाने का संघ स्वागत करता है परंतु उसे हर विषय को पढ़ने के लिए माध्यम बनाना शायद किसी भी तरीके से हिमाचल जैसे राज्य में ठीक नहीं है । यदि फिर भी शिक्षा विभाग के अधिकारी और सरकार इस बात को शिक्षा के क्षेत्र में वैज्ञानिक और आवश्यक समझते हैं तो फिर उन्हें अपने बच्चों को भी निजी संस्थानों से हटाकर सरकारी संस्थानों में डाल देना चाहिए ।