हमारा भारतीय समाज मेअंधविश्वासों और कुरीतियों का एक महत्वपूर्ण स्थान है हम अपनी धार्मिक परंपराओं से दूर होकर के अंधविश्वास में उलझते जा रहे हैं यह देश के लिए बहुत घातक बात है। लोग अधिकांशत बीमारियों के लिए लोग अधिकांशत बीमारियों के लिए डॉक्टर के पास जाने से कतराते हैं और तांत्रिक और ओझाओ के चक्कर में पड़ जाते हैं।
शिक्षा के अभाव में लोग किसी घटना के घटित होने के वैज्ञानिक कारणों से अनजान होते हैं। अंधविश्वास को ईश्वर के साथ जोड़ दिया जाता है जिससे लोग इसकी आलोचना से डरने लगते हैं। लोग मानते हैं कि कुरीतियाँ प्राचीन काल से ही चली आ रही हैं, इसलिये उन्हें इनका पालन करना चाहिये।
इन्हीं अंधविश्वासों के चलते हमारे देश में बाबा तांत्रिकों और ब्राह्मणों की दुकानदारी चलती है आए दिन हमें कोई न कोई घटना मिल जाती है जिसमें की इन बाबाओ द्वारा कुरीतियां और सामाजिक अपराध शामिल है इस बारे में हमारे समाज में जागरूकता होनी चाहिए की कुरीतियों के कारण हमारे व्यक्तिगत और राष्ट्रीय चरित्र पर प्रभाव पड़ता है।अंधविश्वास आपको कर्महीन और भाग्यवादी बनाते हैं। हमारे समाज में कुछ ऐसी मान्यताएं प्रचलित हैं जिन्हें अंधविश्वास कहा जाता है। हालांकि कुछ लोगों के लिए यह आस्था का सवाल हो सकता है।
अल्पावधि सुधारों के लिये हमें ऐसे कानूनों की आवश्यकता है जो इन कुरीतियों के अंत में सहायक हो और दाभोलकर जैसे तर्कवादियों की सुरक्षा सुनिश्चित करता हो।
जबकि दीर्घकालिक सुधार हेतु शिक्षा, तर्कसंगत सोच और वैज्ञानिक चिंतन को बढ़ावा देना होगा।संविधान की वह धारा 51-ए में मानवीयता एवं वैज्ञानिक चिंतन को बढ़ावा देने में सरकार के प्रतिबद्ध रहने की बात की गई है और यह सुनिश्चित की जानी चाहिये।
साथ ही ज़रूरत यह भी है कि अंधविश्वासों को 'परंपराओं और रीति-रिवाज़ों’ से अलग रखा जाए, क्योंकि ये किसी देश के लोकाचार को प्रतिबिंबित करती हैं ।