शंभु जटा से निकली गंगा,धोने सबके पाप।
मोक्षदायिनी हर लेती है,जितने हों अभिशाप।
अमृत जैसा नीर गंग का,जाने सारे राज।
औषध बनकर जीवन देना,
उसका ये ही काज।।
जो भी तट पर आए उसके,हर लेती संताप.
शंभु जटा से निकली गंगा, धोने सब के पाप।।
देव धरा पर बहता कलकल,प्रिय स्वर में संगीत।
दृष्टि न हटती है धारा से,जो है परम् पुनीत।।
यज्ञ धूम्र सी उठे नीर से,शरद काल में भाप...
शंभु जटा से निकली गंगा, धोने सारे पाप।।
इसको मैली क्यों कर डाली,इतना भी क्या स्वार्थ।
हम सब कूड़ा कचरा डालें,यह करती परमार्थ।।
इस पर तो मत लगने देना,
दूषितपन की छाप..
शंभु जटा से निकली गंगा,धोने सबकेक पाप।।
मांँग रही मांँ मैं भी तुमसे,देना अमर सुहाग।
घर अंगना में पुष्प खिले हों, खुशियों के हों राग।।
मैं हूँ एक भिखारिन झोली,भरने वाली आप..
शंभु जटा से निकली गंगा,
धोने सबके पाप।।