3 अगस्त को श्रावण मास का अंतिम सोमवार भी है । श्रावण मास के अंतिम सोमवार में भगवान शिव की विशेष पूजा की जाएगी । पंचांग के अनुसार इस दिन पूर्णिमा की तिथि है जो रात्रि 9 बजकर 28 मिनट तक रहेगी। रक्षाबंधन के दिन चंद्रमा मकर राशि में रहेंगे और इस दिन प्रात: 7 बजकर 19 मिनट तक उत्तराषाढ़ा नक्षत्र रहेगा। इसके बाद श्रवण नक्षत्र आरंभ होगा जो 4 अगस्त प्रात: 8 बजकर 11 मिनट तक रहेगा।
रक्षाबंधन के दिन श्रवण नक्षत्र पूरे दिन रहेगा । यह एक शुभ नक्षत्र है। श्रावण मास में श्रवण नक्षत्र रक्षाबंधन के पर्व की शुभता में वृद्धि करता है । इसलिए इस दिन रक्षाबंधन का महत्व बढ़ जाता है ।
रक्षाबंधन के पर्व पर सर्वार्थ सिद्धि और दीर्घायु आयुष्मान का विशेष शुभ योग का बन रहा है ।
शुक्र और बुध का राशि परिवर्तन
रक्षाबंधन से पूर्व यानि 1 अगस्त को शुक्र का राशि परिवर्तन होने जा रहा है वहीं 2 अगस्त को बुध का राशि परिवर्तन हो रहा है । इन दोनों ग्रहों का रक्षाबंधन के पर्व से पूर्व परिवर्तन कई मामलों में शुभ फलदायी माना जाता है।
श्रावण पूर्णिमा
प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि पूर्णिमा होती है। दरअसल चंद्रमा की कलाओं के उतरने चढ़ने से ही माह के दो पक्ष निर्धारित किये जाते हैं। अमावस्या को चंद्रमा घटते-घटते बिल्कुल समाप्त हो जाता है तो अमावस्या के पश्चात बढ़ते-बढ़ते पूर्णिमा के दिन वह एक दम गोल-गोल बड़ा दुधिया चांदनी वाला नज़र आता है।
जिन दिनों में चंद्रमा का आकार घटता है वह कृष्ण पक्ष तो जिन दिनों में बढ़ता है वह शुक्ल पक्ष कहलाता है। पूर्णिमा को पूर्णिमा, पूर्णमासी, पूनम आदि कई नामों से जाना जाता है। धार्मिक रूप से भी यह तिथि बहुत ही सौभाग्यशाली मानी जाती है। इसलिये इसका महत्व भी बहुत अधिक माना जाता है। श्रावण मास की पूर्णिमा तो इस मायने में और भी खास हो जाती है ।
श्रावण पूर्णिमा के महत्व व पूर्णिमा व्रत व पूजा विधि
साल 2020 में श्रावणी पूर्णिमा 03 अगस्त को है। इस बार सूर्योदय से पहले ही भद्रा समाप्त हो रही है इसलिये यह पूर्णिमा बहुत ही शुभ है।
पूर्णिमा तिथि आरंभ - 21:31:02 बजे (02 अगस्त 2020)
पूर्णिमा तिथि समाप्त - 21:30:28 बजे (03 अगस्त 2020)
हिंदू पंचांग के अनुसार चंद्रवर्ष के प्रत्येक माह का नामकरण उस महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा की स्थिति के आधार पर हुआ है। ज्योतिषशास्त्र में 27 नक्षत्र माने जाते हैं। सभी नक्षत्र चंद्रमा की पत्नी माने जाते हैं। इन्हीं में एक है श्रवण। मान्यता है कि श्रावण पूर्णिमा को चंद्रमा श्रवण नक्षत्र में होता है। इसलिये पूर्णिमांत मास का नाम श्रावण रखा गया है और यह पूर्णिमा श्रावण पूर्णिमा कहलाती है।
श्रावण पूर्णिमा का महत्व
पूर्णिमा की प्रत्येक तिथि शुभ और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है। लेकिन श्रावण पूर्णिमा की अपनी अलग विशेषता है। इस दिन देश भर में विशेषकर उत्तर भारत में रक्षाबंधन का पावन पर्व मनाया जाता है।
जप-तप, दान-दक्षिणा के लिये यह तिथि श्रेष्ठ मानी ही जाती है। इसी दिन अमरनाथ यात्रा का समापन भी होता है। चंद्रदोष से मुक्ति के लिये भी यह तिथि श्रेष्ठ मानी जाती है।
श्रावण पूर्णिमा व्रत व पूजा विधि
श्रावण मास की पूर्णिमा पर वैसे तो विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न पर्वों के अनुसार पूजा विधियां भी भिन्न होती हैं। लेकिन चूंकि इस दिन रक्षासूत्र बांधने या बंधवाने की परंपरा है ।
भगवान विष्णु, भगवान शिव सहित देवी-देवताओं, कुलदेवताओं की पूजा कर भाई को अपनी बहन से और ब्राह्मण के द्वारा अपने हाथ पर रक्षासूत्र बंधवाना चाहिये। तत्पश्चात ब्राह्मण और बहनों को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा देकर उन्हें संतुष्ट करना चाहिये।