**** कोविड़ -19 एक युद्ध ****
देवासुर संग्राम की प्रसिद्धि तो अनादिकाल से ही है। युद्ध और युद्ध के परिणामों से मानव जाति भली-भाँति परिचित है । बीसवीं शताब्दी में जो विश्वयुद्ध हुआ उसकी विभीषिका को देखकर विश्व शांति की बातें होने लगी, शान्ति समितियाँ भी बनी किन्तु फिर भी युद्ध हुआ -
द्वितीय विश्वयुद्ध में आणविक शक्तियों का प्रयोग करके वीभत्स परिणामों से समझ आया कि परमाणु युद्ध कैसा होगा ? तीसरे विश्वयुद्ध की आशंका में मानवता सांस ले ही रही थी कि तभी कोरोना/ कोविड़19 जैविक युद्ध के रूप में सामने आया ।
वर्तमान समय मे प्रमुख समस्या कोरोना महामारी की है । इस युद्ध ने जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया है । आज का मानव कोरोना युद्ध से पूरी तरह से आक्रांत है । व्यक्ति का जीवन हो या समाज का वह जटिलताओं से घिरा हुआ है । आधुनिक लड़ाइयों का स्वरूप आज नैतिक नियमों, मानवीय सिद्धान्तों और आदर्शों को ताक में रखकर यह जैविक युद्ध हमारे सामने खड़ा है । युद्ध की घोषणा भले ही न हुई हो किंतु कोरोना को युद्ध विषयक रुप में ही मै देख रही हूँ । साहित्य के क्षेत्र में जीवन के वास्तविक संघर्ष को व्यक्त करना भी एक प्रकार की वास्तविकता है । ये युद्ध कहीं वैचारिक स्तर पर कहीं भावनात्मक स्तर पर कहीं भौतिकता के लिए कहीं अर्थ आदि के संघर्षों के रुप में स्थान ग्रहण करते हैं । अत: वर्तमान में कवियों का कोरोना से जुड़ी काव्य रचना करना स्वाभाविक प्रतीत होता है । कोरोना की विकरालता ने जहाँ सभ्यता और संस्कृति पर खतरा खड़ा कर दिया है वहीं कविता के यथार्थोन्मुख होने की स्थिति बन गई ।
आज कोरोना वायरस जैविक हथियार के रुप में देश दुनिया के लिए चुनौती बना हुआ है । इस वायरस का रहस्य सुलझाने में सभी आशंकाग्रस्त हैं । चिंता की बात तो यह भी है कि कब आतंकवादियों द्वारा इसका इस्तेमाल न कर लिया जाए । अब हमें किसी भी तरह जैविक व विषाक्त हथियारों का प्रसार भी रोकना होगा ।
यूरोप के सभी देशों में इटली, स्पेन, फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी सबसे अधिक प्रभावित देश हैं जहाँ कोरोना ने अपना कहर बरसाया । एशियाई देशों में देखा जाए तो भारतवर्ष सबसे अधिक संक्रमित देश है । वहीं कोरोना महामारी को लेकर चीन पूरी तरह से घिरा रहा है ।
युद्ध में तो सैनिक, शासक, अस्त्र-शस्त्र से सज्जित बम , तोपें, टैंक आदि के साथ दिखाई पड़ते हैं । लेकिन ऐसे युद्ध को समझने में वक्त लग जाता है क्योंकि जिसे निशाना बनाकर वायरस छोड़ा जाता है उसके साथ में बेकसूर लोग भी स्वतः ही उससे संक्रमित हो जाएगें । युद्ध का यहीं सच है कि युद्ध कोई भी हो दोनों पक्षों के अलावा बेकसूर लोग निशाने पर आ ही जाते हैं ।
युद्ध मे यदि आथिक नुकसान का आकलन किया जाए तो पूर्व के युद्धों से जैविक युद्ध आर्थिक रुप से काफी किफायती होते है और आक्रमण के आरोप से भी बच जाते हैं । कोरोना की तबाही से हम सभी परिचित हैं । कोई भी आक्रमणकारी देश किसी भी दूसरे देश की फसलों , जलस्रोतों, खाद्य वस्तुओं व जीवनोपयोगी वस्तुओं में वायरस डाल सकते है और सम्पूर्ण देश को तबाह कर सकते हैं । संक्रमित व्यक्ति व उसकी प्रयोग की गई वस्तुओं के द्वारा भी संक्रमण फैलाया जा सकता है ।
पूरी दुनिया कोविड़19 के जाल में उलझ कर रह गई है । कोरोना काल में हम वैश्विक बाजारों में हम भारी गिरावट देखते आ रहे हैं । आर्थिक मुश्किलें विश्व स्तर पर प्रत्येक देश भुगत रहा है । पूरी दुनिया आर्थिक मंदी की गिरफ्त में रही है इसकी क्षतिपूर्ति में कई वर्ष लग जाएगें ।
इस काल में रसद आपूर्ति की मुश्किलों को भी देखा गया किस प्रकार दूध,सब्जिया, राशन, स्वच्छता संबंधी वस्तुओं की आपूर्ति घर- घर की गई । इतने बड़े पैमाने पर व्यवस्था बनाने में कठिनाई और मुश्किलें तो भुगतनी ही पड़ती हैं । बेराजगारी का दर्द किसान, छोटे कर्मचारी , दिहाड़ी मज़दूर, फल सब्जी विक्रेता, आटो रिक्शा चालक, ड्राइवर आदि सबने भुगता है ।
सशस्त्र युद्धों वाली युद्धोत्तर समस्या कोरोना योद्धाओं ने भी झेली है समाज के हर वर्ग ने झेली है । मनोवैज्ञानिक दृष्टि से कोरोना ने व्यक्ति में अकेलापन, मायूसी व तनाव ने अपना घर बना लिया है । हम सब असहाय अवस्था में रहने को मजबूर हुए हैं ।
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डा ० अर्चना मिश्रा शुक्ला