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लेख

सवेदित अनुभूतियों की कोमल अभिव्यक्ति है वीणा पाण्डेय की रचनाएं----पद्मामिश्रा

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पद्मा मिश्रा कवयित्री कथाकार | December 26, 2020 08:44 PM

जमशेदपुर झारखंड

उदीयमान सूर्य की प्रत्यूषा जैसी कोमल,अनुराग भरी लालिमा लिए संवेदनशील अनुभूतियों की रचयिता हैं कवयित्री वीणा पाण्डेय,,,सहज,सरल,बेबाक हो अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने की कुशलता ही उनकी पहचान है,, हमारे नगर जमशेदपुर के काव्य मंचों की लोकप्रिय कवयित्री श्रीमती वीणा पाण्डेय भारती की कविताएं हिंदी साहित्य जगत में ताजा हवा के झोंके की तरह शीतल सुखद प्रतीत होती हैं,,

पिछले दिनों उनके प्रथम काव्य संग्रह*सपनों के पंख*का लोकार्पण हुआ और अल्प समय में ही यह पुस्तक नगर के साहित्यप्रेमियों के बीच छा गई,, मुझे वीणा ने अपनी पुस्तक सस्नेह उपहार स्वरूप प्रदान की, और मैं एक पाठिका के रूप में भी उनकी काव्य साधना से प्रभावित हुई,प्रशसिका तो पहले से थी ही,

पुस्तक के शीर्षक*सपनों कै पंख*ने इसे पढने की उत्सुकता जगा दी,, पुस्तक का बाह्य आवरण बेहद सुंदर लगा,साथ ही भूमिका में वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय दिनेश्वर प्रसाद सिंह दिनेश जी की लेखनी ने सशक्त भूमिका निभाई , मां सरस्वती के वरद पुत्र का आशिर्वाद जहां हो वहां किसी भी सृजन को उत्कृष्ट और प्रभावी होना स्वाभाविक है,,
आदरणीय सी भास्कर राव, आदरणीय पाण्डेय जी, एवं डा जूही समर्पिता दी की शुभकामनाएं भी कवयित्री का मनोबल बढाती है और इन वरिष्ठ साहित्यकारों का आशीष जिसे मिला,वह सचमुच समृद्ध है अपनी सशक्त लेखनी से 🙏🏻

कवयित्री की संवेदनशीलता अपनी मातृभूमि,भारत माता, और साथ ही करूणा, अहिंसा,भारत की अखंडता के प्रति पूर्णतः सजग है जहां देश और देशवासियों के प्रति कल्याण की कामना अंतर्निहित है,इस कविता ने मन को छू लिया,मेरी भी भावनाएं कवयित्री वीणा की संवेदना के साथ जुड़ गयी,इसकी पंक्तियां सहज ही प्रभावित करती है---

आओ अपने देश में

शांति अहिंसा,एकता, अखंडता

उदारता, मानवता

और भातृप्रेम का दीप जलाकर

मां भारती का भाल आलोकित कर दें!!

मां भारती का भाल सचमुच ही ऐसे काव्य दीपों से जगमगाया है, जहां मन की सच्चाई शब्दों के माध्यम से सृजन की लेखनी से साकार होती है,

नारी विमर्श के मुद्दों को उठाती हुई अनेक कविताएं है जो नारियों के प्रति समाज में होते हुए अनीति व अत्याचारों का दमन करने का हौसला रखती है, शक्ति साहस और शौर्य का प्रतीक बनी नारी के उस रुप को साकार होते देखना चाहती है जो संघर्षों से हार नहीं मानती,अपने हक के लिए लड़ना जानती है,वह समाज में ऐसी हजारों दामिनियो की कल्पना करती है जो अंत तक संघर्ष करती रही, और न्याय की लड़ाई

 में पीछे नहीं हटी, न झुकी और न हार मानी,,,

दामिनी जिंदा है हम सबमें

संघर्ष का अध्याय बनकर*

वीणा पाण्डेय भारती की सहजता कोमलता और स्वभाव की विनम्रता उन्हें सबसे विशिष्ट बनाती है,,इस पुस्तक की रचनाओं में भी यह कोमलता झलकती है, भावनाओं को अभिव्यक्त करने की कला, उनकी सहजता की देन है,तभी हम कहते हैं कि रचना में रचनाकार का व्यक्तित्व समाहित रहता है, एक नारी होते हुए एक नारी मन को समझ पाना ज्यादा सरल है और यह वीणा ने सत्य कर दिखाया है,वह मां भी है अतः एक मां के ममत्व को बखूबी जीना जानती है,उनका मानना है कि मां दुनिया की सर्वोत्तम निधि है और विधाता की अद्भुत कृति भी,,, मां की तुलना धरती से करती हुई कवयित्री वीणा पाण्डेय ने धरती की सहनशीलता और शीतलता की तुलना मां के मन से की है,जो कोमल है, सहनशील है, संवेदनशील और ममतामयी है,वह भी अपने बच्चों को  सुरक्षा की छांव देती है जैसे धरती,,

*यह धरती तुम्हारी है

मेरे बच्चे

और, यह मां भी तुम्हारी***

जीवन के विशाल प्रांगण में उसके बच्चे कहीं खो न जाए,उलझ न जाएं जीवन की आपाधापी में,,वह मां सदैव उसका संबल बना रहना चाहती है,*तुम लौट आना मेरे बच्चे*"में यही भाव अभिव्यक्त होता है, यहां पर कवयित्री आकाश की अनंत गहराइयों में उसे मुक्त कर देना चाहती है--उड़ान भरने के लिए ,ताकि वह स्वयम् अपनी सपनों की दुनिया का निर्माण कर सके, उसके ममत्व के बंधनों से मुक्त हो वह पंख फैला निरभ्र आकाश की गहराइयां नाप सके, किंतु मां के अदृश्य स्नेह के बंधनों से भी आजीवन बंधा रहे, बहुत सुंदर लगती है ये पंक्तियां---

**जीता है यथार्थ,मातृत्व से परे

आंधी ओले पतझड़ से लड़,

समेटना होगा,

मातृत्व का आंचल मुझे

तुम्हें उन्मुक्त करने के लिए,,**

नारी विमर्श के मुद्दों पर वह ज्यादा सशक्त है,,मुखर हैं, भावनाओं में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, एक संकल्प, एक विचार, एक दृढ़ता उनकी रचनाओं में सर्वत्र परिलक्षित होती है,,वह जीवन के विशाल प्रांगण में उन्मुक्त हो विचरण करना चाहती हैं तो घर परिवार के स्नेहिल दायरों से अलग होना भी उन्हें स्वीकार नहीं,जब वो कहती हैं कि सारा आकाश मेरे लिए खुला है तो मुझे डर कैसा,, मैं उड़ना चाहती हूं, पंख भी है,तो बाधाओं से घबराना क्यो?? मैं कठिनाइयों पर भी जीत पा ही‌‌ लूगी--

आकाश दिख रहा है

विस्तार देख लेंगे

जब पंख मिल गये है

उड़ान,भी भर लेंगे*

और यही उम्मीद उन्हें अंधेरे में भी रोशनी दिखाती है, कहते हैं कि हर काली रात के बाद उगता है उम्मीदों का सूरज, फिर आलोक फैलेगा,, रास्ते आसान हो जाएंगे, और मंजिल कुछ और पास आ जाएगी,वह हार नहीं मानती, अपने संघर्षों पर विजय पाने की कल्पना उनकी आशाओं को गति देती है, विस्तार देती है,,,,

फिर बरसेगा बादल

धरती लेगी अंगड़ाई

फूटेगा नया अंकुर

विकसित होगी कली और किसलय,*

वीणा पाण्डेय भारती से मेरी पहली मुलाकात बहुत ही रोचक ढंग से हुई थी, तुलसी भवन के एक कार्यक्रम में मिलने से पहले मैं नहीं जानती थी कि वे मेरी कविताओं की प्रशसिका है,,हम बगल में बैठे थे एक साथ, आदरणीय श्यामल सुमन भैया भी थे, वीणा ने उनसे पूछा कि पद्मा मिश्रा जी अभी तक नहीं आई,तो भैया ने हंसते हुए कहा कि यही तो पद्मा मिश्रा है*मुझे भी सुखद आश्चर्य हुआ था जानकर कि पत्र पत्रिकाओं में छपने वाली मेरी हर रचना वो पढती रहीं हैं और मुझसे मिलना चाहती थी,,इस सुखद मिलन ने एक स्नेहिल रिश्ता बनाया जो आज तक कायम है,, मैंने वीणा की लेखनी को पनपते, संवरते और सशक्त होते हुए देखा है, जिसका सुंदर प्रमाण है उनका पहला काव्य संग्रह*सपनों के पंख*

कवयित्री की लेखनी विराम नहीं लेना चाहती, लेना भी नहीं है,यह सृजन अनवरत चलता रहे,मेरी हार्दिक शुभकामनाएं मंगलकामनाएं प्रिय वीणा के लिए,, खूब लिखिए और आकाश की ऊंचाइयों को छू लें, जैसे कि वह स्वयम अपनी रचना में कहती हैं--

*तू भले ठहर ऐ जिन्दगी

मुझे अभी नहीं ठहरना है

है मंजिलें दूर बहुत फिर भी

मुझे तो और सफर करना है*

 

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