माधुर्य व लालित्य की देवी माँ शारदे का प्राकट्य
उल्लास के पर्व वसंत पंचमी की परंपरा, इसके लालित्य एवं मनमोहक, उत्साहपूर्ण वातावरण का चित्रण तुलसी कृत " रामचरित मानस " की चौपाई-
नौमी तिथि मधुमास पुनीता ।
सकल पुच्छ अभिजित हरिप्रीता ॥
मध्य दिवस अति सीत न घामा ।
पावन काल लोक विश्रामा ॥
सीतल मंद सुरभि बह बाऊ ।
बन कुसुमित गिरिगन मनिआरा ॥
भगवान राम का जन्म वसंत ऋतु में हुआ जो सभी ऋतुओं में श्रेष्ठ मानी जाती है । ऐसे सुखद वातावरण में भगवान राम जन्म लेते है ऐसे वसंत उत्सव का हम किन शब्दों में बखान करें।
वसंत ऋतु के सन्दर्भ में मै सृष्टि रचना की एक कथा जोड़ती हूँ- भगवान ने अर्थात ब्रम्हा जी ने जब संपूर्ण सृष्टि की रचना पूर्ण कर ली तो वह अपनी इस रचना को बड़े ध्यान और ज्ञान से देखते हैं!!!!! भगवान ने देखा यह संपूर्ण सृष्टि तो मूक है अर्थात बिना वाणी की है । ब्रम्हा जी भी सोंच में पड़ गए कि मुझे भी कुछ कमी - कमी सी लग रही है इस सृष्टि में कुछ अधूरापन रह गया है!!!! यह अधूरापन कैसे पूरा होगा???? कुछ सोंचकर ब्रम्हा जी ने विचार किया और माँ शारदे की प्रार्थना ,आराधना करने लगे। ब्रम्हा जी के आवाहन करने पर माँ सरस्वती प्रकट हो गई उनके आते ही वाणी और संगीत का प्रागट्य हुआ । यह दुनिया वाणीमय और संगीतमय हो गई । सर्वत्र रसधारा फूट पड़ी जो कवियों, कलाकारों, संगीतकारों की प्रतिभा गुनगुना उठी, किसान खुशहाल दिखाई पड़ने लगे, खेत-खलिहानों में फसलें लहलहाने लगीं, महिलाएं एकत्रित होकर वसंत के गीत गाने लगीं, आमों में मंजरियों की खुशबू दूर तक फैलने लगी, सरसों के पीले खेत मानो माँ सरस्वती को पीले वस्त्र भेंट करते नजर आने लगे, घरों में पीला भोजन मानो सर्वत्र वसंत का रस घुल गया था ।
शीतकाल की विदाई और ग्रीष्मकाल का आवाहन इन दोनों ऋतुओं के बीच की ऋतु वसंत यानी मधुमास । यह वह ऋतु है जब किसानों की मेहनत लहराती दिखाई देती है । वसंत पंचमी के पर्व में ज्ञान की देवी माँ सरस्वती की विशेष पूजा -अर्चना करते हैं। ज्ञान और बुद्धि की देवी माँ सरस्वती बच्चों में ज्ञान का भण्डार भरती हैं । हम सभी महिलाएं वसंत पंचमी के पर्व में अखण्ड सौभाग्यवती एवं प्रेम से परिपूर्ण वैवाहिक जीवन की कामना से सुहाग लेने की परंपरा को बड़ी ही आस्था के साथ मनाते हैं। इस सुहानी ऋतु में प्रकृति एक नए आवरण से ढक जाती है। पेड-पौधे फलों और फूलों से भर जाते है, नव किसलय की भाँति जन - जन में नवसंचार होने लगता है । प्रकृति नई दुल्हन बन अपना श्रृंगार कर नई ऊर्जा और खुशियाँ सर्वत्र बिखेरती है ।
यह मधुमास कामोद्दीपक मास के रुप मे भी जाना जाता है जहाँ कामदेव और रति सृष्टि के आधार रुप हैं। रति प्रेम और आकर्षण की देवी हैं तो कामदेव का संबंध भी प्रेम और कामभाव से है । यह भी मान्यता है कि वसंत पंचमी के ही दिन पहली बार कामदेव और उनकी पत्नी रति ने मानव हृदय में प्रवेश कर आकर्षण और प्रेमभाव की उत्पत्ति की थी। यह वसंत पंचमी का पर्व ज्ञान, उल्लास, समृद्धि और प्रेम का प्रतीक है ।