अमिताभ शुक्ल को कविता का संस्कार बचपन से ही मिल गया था . पेशे से अर्थशास्त्र के विश्वविद्याल यीन अध्यापक होकर भी उनकी अभिरुचि इतर अकादमिक अनुशासन में भी खूब है। इसलिए किताबी दुनिया के बीच रहकर किताबी कीट बन जाने वाली नियति से बचे रहे और समाज के प्रत्येक चाल चलन के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अपनी संवेदनात्मक सजगता का परिचय देते रहे . कविता इन दिनों ठीक-ठीक क्या है ,कहना मुश्किल है . मेरी समझ में तो इतना आया है कि वह एक भावनात्मक भाषा है , संभवतः मूर्ति मती भाषा . डॉ अमिताभ शुक्ल की कविताएं इस कसौटी पर कितनी खरी हैं यह उनके पाठक ही तय करेंगे . पर जैसा महाकवि तुलसी कह गए हैं कि सच कहना ही कविता है . अमिताभ की कविताएं भी जमाने के उसी सच का बयान हैं . - प्रोफेसर विजय बहादुर सिंह साहित्यकार एवं समालोचक , - भोपाल (म.प्र.) दिनांक - २ अक्टूबर २०.