वसंत पंचमी मनाने का दो महत्वपूर्ण कारण है, जिससे मानव जीवन ही नहीं जीव मात्र प्रभावित है। माघ शुक्ल पंचमी के दिन ही धरती पर कामदेव और रति का अवतरण हुआ था और होता है। दो महीने तक कामदेव और उनकी पत्नी रति धरती पर विचरण करते हैं। इस दो माह को वसंत ऋतु के नाम से जानते हैं। इसे ऋतुराज भी कहते हैं। कामदेव और रति के प्रभाव से पृथ्वी पर सभी जीवों में प्रेम का संचार होता है। यह प्रेम ही जीवन का मूल आधार है। एक ऐसा एहसास है, जो प्रायः मृत दिल में संजीवनी बूटी की तरह जान फूँक देता है।
प्रेम सत्य है, परमात्मा है। प्रेम सिर्फ श्रृंगारिक ही नहीं होता, यह सभी भावों का सिरमौर है। राधा-कृष्ण सच्चे प्रेम के प्रतीक हैं। प्रेम किसी रिश्तों का मोहताज नहीं होता।वह विशुद्ध रूप से जीवन का मूल है, जिसकी जड़ें पीपल और बदगद की तरह दूर-दूर तक अन्दर- ही- अन्दर फैलती रहती है। अतः वसंत पंचमी मनाकर हम कामदेव और रति का हार्दिक स्वागत करते हैं। इसे मदनोत्सव भी कहते हैं। वसंत के आगमन के साथ ही धरती पीली चूनर ओढ़ झूमने लगती है। सरसों के फूल मन को मोहित कर लेते हैं। खेतों में रवि की फसलें लहलहाती हुई मानों नृत्य कर खुशी का इजहार कर रही हों। गेहूँ की बालियाँ मदहोश हो झूमती रहती हैं। कृषक भी फाग राग में डूब जाते हैं और इसी मदनोत्सव से अबीर-गुलाल की शुरुआत हो जाती है।
प्रेम को मुखर होना भी उतना ही आवश्यक है, जितनी उसकी उपस्थिति। ब्रह्मा द्वारा सृष्टि और जीव का सृजन तो हुआ, लेकिन कहीं कोई हलचल नहीं, सुगबुगाहट नहीं। प्रेम का भाव भी है ,परन्तु जड़वत। ऐसी स्थिति में दुखी ब्रह्मा जी ने इस समस्या को नारायण के समक्ष रखे। विष्णु भगवान ने आदि शक्ति का अवाह्न किया। आदि शक्ति से एक श्वेत ज्योति निकली, जो वीणा के साथ देवी के रूप में प्रकट हुई। ज्यों ही देवी ने वीणा के एक तार का सरगम छेड़ा, सृष्टि में कोलाहल होने लगी। नदियों की कल-कल ध्वनि, पवन से सरसराहट की ध्वनि निकलने लगी। संगीत का संचार हुआ। उस दिन माघ शुक्ल पंचमी तिथि थी। आदि शक्ति का दिया हुआ नाम सरस्वती का अवतरण उसी दिन से माना जाता है। माँ सरस्वती विद्या, ज्ञान, बुद्धि-विवेक की दात्री है। अतः सभी माँ सरस्वती की पूजा करते हैं। विशेष रूप से जो शिक्षा से जुड़े हैं वो माँ की भव्य मूर्ति की स्थापना कर षोडशोपचार विधि से पूजा-अर्चना करते हैं।
माँ सरस्वती के प्रादुर्भाव की भी कई कथाएँ हैं। किसी को भी झूठलाया नहीं जा सकता है, क्योंकि सम्भव है कि हर कल्प में अलग-अलग प्रादुर्भाव की कथाएँ हों। हरि अनंत हरि कथा अनंता।